31 January 2025

WISDOM ----

  आज  संसार  में  इतनी  अशांति  है   उसका  एक  प्रमुख  कारण  है  --' असंतोष '  l  मनुष्य  सुख -सुकून  पाने  की   चाह   में  भटक  रहा  है  , शांति  कहीं  नहीं  है  l  पौराणिक  कथा  है  ---- कुबेर  ने  स्वर्ण नगरी लंका  का  निर्माण  किया   और  उसे  भगवान  शिव  को  भेंट  करने  गया  l  शिवजी  यक्षराज  कुबेर  से  बोले  ---- " कुबेर  !  मैं  कैलास  पर  समाधिस्थ  रहने  में  ही  संतुष्ट  हूँ  ,  इस  स्वर्ण नगरी  का  मैं  क्या  करूँगा  ? "  तभी  रावण  वहां  पहुंचा  और  उसने   भगवान  शिव  से  प्रार्थना  की  कि  लंका  उसे  दे  दी  जाये  l  भगवान  शिव  ने  सहर्ष  सहमति  दे  दी  l  इस  पर  कुबेर  बोले  --- "  भगवान  !  रावण  तो  पहले  ही  36  महल  लेकर  बैठा  है  ,  उसे  एक  और  की  भला  क्या  आवश्यकता  है  ? "   प्रत्युत्तर  में  भगवान  शिव  बोले  ---- " इसे  रावण  को  ही  दे  दो  कुबेर  !  जो  36  महलों  से  ही  संतुष्ट  नहीं  हुआ  ,  उसे  37वां  भी  संतोष  नहीं  दे  सकेगा  l  "   रावण  के  पास  सब  कुछ  था   लेकिन  शक्ति  के  साथ  यदि  अहंकार  हो  तो  यह  अहंकार   विवेक  को  पनपने  नहीं  देता  l  जितनी  ज्यादा  शक्ति  , उतना  ही  बड़ा  अहंकार   और  इस  अहंकार  को  पुष्ट  करने  के  लिए  उतना  ही  अत्याचार , अन्याय  l  कलियुग  में  संवेदनाएं  तो  कहीं  खो  गईं  हैं  , अंधकार  की  शक्तियां  आक्रामक  हो  गईं  हैं  ,  उन्हें  अपने  अस्तित्व  की  चिंता  है  ,  प्रकाश  को  रोकने  का  भरसक  प्रयास  कर रही  हैं  l  जो  जितना  शक्तिशाली , वैभव  संपन्न है  ,  विवेक  के  अभाव  में  उसके  अत्याचार  और  अन्याय  का  दायरा  उतना  ही  बड़ा  है  l  इससे  भी  अधिक  कष्टदायक  बात  यह  है  कि  रावण  की  ' माया '  ,  आसुरी  शक्तियां  जो  छिपकर  वार  करती  हैं  वे  प्रबल  हो  गईं  हैं  l  वास्तव  में  अपराधी  कौन  है  यह  तो  अपराध  करने  वाला   और  ईश्वर  ही  जानता  है  l  कर्म  का  फल  तुरंत  नहीं मिलता  l  अपने  बनाए  कर्म फल  विधान  के  आगे   ईश्वर   स्वयं  भी  विवश  हैं  l  संसार  में  बढ़ती  हुई  असुरता  और  संवेदनहीनता   को  कैसे  दूर  किया  जाए  यह  एक  जटिल  प्रश्न  है  ?  हमारे  वेद  और  प्राचीन  ग्रन्थों में  अनेक  मन्त्र  हैं  ,  यदि  श्रद्धा  और  विश्वासपूर्वक   सम्मिलित  रूप  से  उनका  जप  किया जाये   और  इस  कलियुग  में  थोड़ा  सा  भी  अपने  आचरण  में  सुधार  कर  लिया  जाये   तो  इस  असुरता  को , नकारात्मकता  को  पराजित  किया  जा  सकता  है   l  जागरूकता  और  देवत्व  की   विजय   का  संकल्प  भी  जरुरी  है  l  अध्यात्म  में  ही  असुरता  को  पराजित  करने  की  ताकत  है  l  

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