30 January 2025

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा आचार्य जी  लिखते  हैं -----" भगवान  पत्र -पुष्पों  के  बदले  नहीं  , भावनाओं  के  बदले  प्राप्त  किए  जाते  हैं   और  वे  भावनाएं  आवेश , उन्माद  या  कल्पना  जैसी  नहीं  , वरन  सच्चाई  की  कसौटी  पर  खरी  उतरने  वाली  होनी  चाहिए  l  उनकी  सच्चाई  की  परीक्षा  मनुष्य  के  त्याग , बलिदान  , संयम  , सदाचार  एवं  व्यवहार  से  होती  है  l  "    वर्तमान  युग  का  सबसे  बड़ा संकट  यही  है  कि  लोग  सोचते  हैं  कि  जी  भरकर  पापकर्म  करो ,  फिर   डुबकी  लगाओ , नहा  -धो  के  भगवान  को  पुष्प , फल , मिठाई  चढ़ा  कर  अपने  पाप  कर्मों  को  धो  डालो ,  और  फिर  नए  सिरे  से  अपने  मनचाहे  मार्ग  पर  चलो  l  हमें  इस  सत्य  को  समझना  चाहिए  कि  इतनी  सरलता  से  पापकर्मों  से  मुक्ति  मिल  गई  होती  तो  संसार  में  इतना  दुःख , लोगों  के  जीवन  में  तनाव , बीमारियाँ  ,  आपदा -विपदा  नहीं  होतीं  l  जाने -अनजाने  कोई  भी  पाप  हो  जाये  तो  उसकी  सजा  अवश्य  मिलती  है  ,  दंड  से  बचना  है  तो  श्रेष्ठ  गुरु  के  संरक्षण  में  अपने  पापों  का  प्रायश्चित्त  करना  पड़ता  है  l  गंगा जी  मात्र  पवित्र  नदी  ही  नहीं  हैं  , वे   जीवन्त  है  ,  पितामह  भीष्म  गंगापुत्र  थे  l  हमें  यह  समझना  चाहिए  कोई  हमारे  सिर  पर  अपना  कचड़ा  डाले  तो  हमें  कैसा  लगेगा  ?  हमें  बहुत  क्रोध  आएगा  !  गंगा जी , प्रकृति  माँ  के  ऊपर  करोड़ों  लोग  अपना  कचड़ा  डाल  रहे  हैं  ,  उनका  क्रोधित  होना  स्वाभाविक  है  l  यह    वेद   -पुराणों  द्वारा  निश्चित   पवित्र  समय   उन  महान  आत्माओं  के  लिए  है  जो  काम , क्रोध , लोभ , मोह  आदि  सांसारिक  आकर्षण  से  विरक्त  हैं  ,  उनके  स्पर्श  से  प्रकृति  को  पोषण  मिलता  है  ,  संसार  का  अँधेरा  दूर   होने   लगता  है  l  अमृत  सबके  लिए  नहीं  होता  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं  ----" अपनी  दुष्प्रवृतियों  को  नियंत्रित  कर  लेना  ही  साधना  है   और  अपने  व्यक्तित्व  का  परिष्कार  कर  लेना  ही  सिद्धि  है  l "   हम  अपने  विकारों  को  दूर  कर  ह्रदय  को  निर्मल  बनाए  ,  ऐसे  पवित्र  ह्रदय  में  ही  ईश्वर  आयेंगे  ,  फिर  हमें  उन्हें  ढूँढने  कही  जाने  की  जरुरत  नहीं  होगी  l