एक बार एक लोभी सेठ ने सोचा कि किसी ऐसे ब्राह्मण को भोजन करा दिया जाये ,जो ज्यादा न खाता हो | इससे पैसा भी बच जायेगा और पुण्य भी मिल जायेगा | सेठजी एक दुबले -पतले ब्राह्मण को ढूंढते हुए पहुंचे और मिलते ही पूछा -"आप कितना भोजन लेते हैं ?"उसने कहा -"आधा किलो | "सेठजी ने उन्हें न्योता दिया और कहा -"मैं तो घर रहूंगा नहीं ,सौदा लेने जाना है | कल आप घर जाकर भोजन कर आना | "सेठजी ने सेठानी से भी कहा -"मैं तो काम से जाऊंगा ,ब्राह्मण देवता आएंगे ,तुम भोजन करा देना | "
ब्राह्मण देवता अगले दिन आये ,सेठानी को ढेर सारे आशीर्वाद दिये | सेठानी बोली -"पंडितजी !आप क्या -क्या लेंगे ?"मौका ठीक जानकर ब्राह्मण देव ने कहा -"ज्यादा नहीं ,सौ किलो आंटा ,अस्सी किलो चावल ,अस्सी किलो शक्कर ,पचास किलो घी ,पांच किलो नमक और दो किलो मसाला घर भिजवा देना | "फिर उन्होंने जमकर भोजन किया ,दो सौ रु. दक्षिणा में लिये और घर आ गये | आते ही ओढ़कर सो गये | ब्राह्मणी से बोले -"सेठजी आयें तो तू रोने लगना और कहना कि जबसे आपके यहां से आयें हैं ,सख्त बीमार हैं ,बचने की कोई उम्मीद नहीं है | "सेठ घर पहुंचा | सेठानी से विस्तार से सुनकर पहले तो बेहोश हो गया | फिर होश आने पर ब्राह्मण के घर गया | सब द्रश्य देखकर ब्राह्मणी के हाथ में पांच सौ रु. और रखकर बोला -"अच्छी तरह इलाज कराओ ,पर किसी से कहना मत कि सेठजी के घर खाना खाने गये थे | "
'अति लोभ का परिणाम लुटने के रूप में ही होता है | '
ब्राह्मण देवता अगले दिन आये ,सेठानी को ढेर सारे आशीर्वाद दिये | सेठानी बोली -"पंडितजी !आप क्या -क्या लेंगे ?"मौका ठीक जानकर ब्राह्मण देव ने कहा -"ज्यादा नहीं ,सौ किलो आंटा ,अस्सी किलो चावल ,अस्सी किलो शक्कर ,पचास किलो घी ,पांच किलो नमक और दो किलो मसाला घर भिजवा देना | "फिर उन्होंने जमकर भोजन किया ,दो सौ रु. दक्षिणा में लिये और घर आ गये | आते ही ओढ़कर सो गये | ब्राह्मणी से बोले -"सेठजी आयें तो तू रोने लगना और कहना कि जबसे आपके यहां से आयें हैं ,सख्त बीमार हैं ,बचने की कोई उम्मीद नहीं है | "सेठ घर पहुंचा | सेठानी से विस्तार से सुनकर पहले तो बेहोश हो गया | फिर होश आने पर ब्राह्मण के घर गया | सब द्रश्य देखकर ब्राह्मणी के हाथ में पांच सौ रु. और रखकर बोला -"अच्छी तरह इलाज कराओ ,पर किसी से कहना मत कि सेठजी के घर खाना खाने गये थे | "
'अति लोभ का परिणाम लुटने के रूप में ही होता है | '
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