राजा मंत्री से बोला --"क्या गृहस्थ में रहकर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ?"मंत्री बोला -"हाँ महाराज !यह संभव है ,पर इसका उत्तर महात्माजी दे सकते हैं ,जो समीप ही गोदावरी तट पर रहते हैं | घना वन है ,हमें उनके नियम के अनुसार चलना होगा | "राजा ने पूछा नियम क्या हैं ?'
मंत्री बोले -"राजन !महात्माजी ने नियम बनाया है कि जो भी उनसे मिलने आये ,ध्यान रखे कि कोई कीड़ा -मकोड़ा पाँव से कुचल न जाये | यदि कुचल जाता है तो वे श्राप दे देते हैं | "राजा ने मंत्री की बात सुन ली और ध्यानपूर्वक बड़ी देर में मार्ग पार किया | महात्माजी ने सत्कार किया और पूछा -"राजन !अभी आप आये ,मार्ग में क्या -क्या देखा ?"राजा बोले -"भगवन !मैं तो मात्र कीड़े -मकोड़ों से किसी तरह बचता आया हूँ | मैंने कुछ नहीं देखा | "महात्मा जी बोले -"यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है ।
ईश्वर के दंड से से डरकर यदि मनुष्य जीवनपथ पर दुष्कर्मों से बचताचले तो निश्चित ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है |
मंत्री बोले -"राजन !महात्माजी ने नियम बनाया है कि जो भी उनसे मिलने आये ,ध्यान रखे कि कोई कीड़ा -मकोड़ा पाँव से कुचल न जाये | यदि कुचल जाता है तो वे श्राप दे देते हैं | "राजा ने मंत्री की बात सुन ली और ध्यानपूर्वक बड़ी देर में मार्ग पार किया | महात्माजी ने सत्कार किया और पूछा -"राजन !अभी आप आये ,मार्ग में क्या -क्या देखा ?"राजा बोले -"भगवन !मैं तो मात्र कीड़े -मकोड़ों से किसी तरह बचता आया हूँ | मैंने कुछ नहीं देखा | "महात्मा जी बोले -"यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है ।
ईश्वर के दंड से से डरकर यदि मनुष्य जीवनपथ पर दुष्कर्मों से बचताचले तो निश्चित ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है |
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