ईसप की लोककथाएँ-नीतिकथाएँ सर्व प्रचलित हैं , एक गुलाम कहे जाने वाले व्यक्ति ईसप के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ एक घटनाक्रम से आया । ईसप जिस जमींदार का गुलाम था वह किसी दूसरे जमींदार से शर्त हार गया । शर्त के अनुसार - समुद्र का पूरा पानी पीने की सजा हारने वाले जमींदार को मिली । आदमी के लिये भला यह कैसे संभव है ? अत: वह जमींदार बहुत परेशान था ईसप ने अपने मालिक को परेशान देखकर कहा -यदि आज्ञा दें तो मैं मुक्ति का उपाय बतलाता हूँ । जमींदार ने कहा कि यदि इस समस्या से पीछा छुड़ा दे तो ईसप को वह मुक्त कर देगा । सभा आयोजित की गई , सभी समुद्र तट पर पहुंचे । शर्त के अनुसार ईसप के मालिक को समुद्र का पूरा पानी पीने को कहा गया । तभी ईसप बोल उठा - यदि आप लोग पहले समुद्र में निरंतर गिर रहीं नदियों को थोड़े समय के लिये रोक दें तो हमारे मालिक निश्चित ही समुद्र का पानी पी जायेंगे । ईसप की चतुराई भरी बात सुनकर सभी ताकते रह गये ।
ईसप ने अपनी बात को नीतियुक्त बताते हुए समझाया --
' मानव जीवन भी इसी प्रकार है । जब तक मन की इच्छाओं की पूर्ति होती रहती है , तब तक वह आपाधापी में लगा रहता है । मन रूपी समुद्र में यदि वासनाओं की नदियों को न बहने दिया जाये तो वासनाएँ स्वत: ही तिरोहित हो जायेंगी । '
ईसप न केवल मुक्त हो गए , वहीँ से उनके अंदर के नीति कथाकार का उदय हुआ । आज विश्व भर में कथा साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है ।
ईसप ने अपनी बात को नीतियुक्त बताते हुए समझाया --
' मानव जीवन भी इसी प्रकार है । जब तक मन की इच्छाओं की पूर्ति होती रहती है , तब तक वह आपाधापी में लगा रहता है । मन रूपी समुद्र में यदि वासनाओं की नदियों को न बहने दिया जाये तो वासनाएँ स्वत: ही तिरोहित हो जायेंगी । '
ईसप न केवल मुक्त हो गए , वहीँ से उनके अंदर के नीति कथाकार का उदय हुआ । आज विश्व भर में कथा साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है ।
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