अपने व्यक्तित्व को श्रेष्ठ विचारों का स्नान करा देना ही ध्यान कहलाता है -हमारी समस्त समस्याओं का मूल कारण व्यक्तित्व के गठन में संव्याप्त कमियों में छिपा हुआ है
व्यक्तित्व को सही ढंग से निखार लेना, उसका सुनियोजन करना जिस दिन मनुष्य को आ जाता है, उसकी सारी समस्याओं कष्टों ,परेशानियों का अंत हो जाता है
ध्यान मात्र एकाग्रता नहीं है , जब व्यक्ति का व्यक्तित्व व्यवस्थित ही नहीं, पूर्णत:प्रकाशित भी होने लगता है , तब ध्यान संपन्न हुआ माना जाता है
जीवन जीने की कला के नाम से जिस विधा को पुकारा जाता है, वह यही अध्यात्म साधना है, जिसकी ध्यान एक क्रिया है
व्यक्तित्व को सही ढंग से निखार लेना, उसका सुनियोजन करना जिस दिन मनुष्य को आ जाता है, उसकी सारी समस्याओं कष्टों ,परेशानियों का अंत हो जाता है
ध्यान मात्र एकाग्रता नहीं है , जब व्यक्ति का व्यक्तित्व व्यवस्थित ही नहीं, पूर्णत:प्रकाशित भी होने लगता है , तब ध्यान संपन्न हुआ माना जाता है
जीवन जीने की कला के नाम से जिस विधा को पुकारा जाता है, वह यही अध्यात्म साधना है, जिसकी ध्यान एक क्रिया है
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