'ईश्वर विश्वास और आस्तिकता की भावना मनुष्य की दुष्प्रवृतियों पर अंकुश लगाती है । '
गिरीश चंद्र घोष ( जी सी ) एक सांसारिक व्यक्ति थे । दुनिया का कोई भी ऐसा दोष न था , जो उनसे जुड़ा न हो । शराब , स्त्री संग, तंबाकू से लेकर सभी तरह के भोग विलास के साधनों में लिप्त रहते थे । वे रामकृष्ण परमहंस के पास आते रहते थे अवश्य कोई पूर्वजन्म के संस्कार थे । वे नाटक अच्छा लिखते थे और उनका थियेटर खूब चलता था । एक दिन वे रामकृष्ण परमहंस से बोले -"भट्टाचार्य !सुना है तुम भगवान से मिलाते हो , हमें भी मिला दो । " ठाकुर बोले -" सवेरे जल्दी उठ , माँ का नाम ले । शाम को भी माँ का नाम ले। "जी सी बोले -" सवेरे 1 2 बजे सोकर उठता हूँ और रात्रि को 2 बजे सोता हूँ । ऐसे में तुम्हारे नियम का पालन कैसे करूँ ?"
ठाकुर बोले -" अच्छा ! दिन में जब होश आ जाये , समझ में आये , तभी माँ का नाम लिया कर । अच्छा ऐसा कर अपना सारा भार मुझे दे दे । "
जी सी को लगा यह आसान तरीका है , उनने कहा -" अपना सब भार तुमको दिया , अब तुम ही माँ का नाम लेना । " उनके थियेटर में प्रह्लाद नाटक आया । जी सी बुलाने गये -" आप इसमें तो आ सकते हैं । मेरे थियेटर में जरुर आइये । "
ठाकुर बोले -" सब देने के बाद थियेटर तुम्हारा कैसे हो गया , वह तो मेरा है । "
यह बड़े परिवर्तन का दिन था । दिल साफ था , दिया तो पूरा दिया । धीरे -धीरे उनने भाव प्रगाढ़ कर लिया , इतना कि मैं रामकृष्ण का हूँ । सारे ऐब छूट गये , सब बुराइयाँ दूर हो गईं ।' मैं ' रहा ही नहीं , वहां आराध्य आ गये । गुरु कृपा हो तो क्या कुछ संभव नहीं ।
गिरीश चंद्र घोष ( जी सी ) एक सांसारिक व्यक्ति थे । दुनिया का कोई भी ऐसा दोष न था , जो उनसे जुड़ा न हो । शराब , स्त्री संग, तंबाकू से लेकर सभी तरह के भोग विलास के साधनों में लिप्त रहते थे । वे रामकृष्ण परमहंस के पास आते रहते थे अवश्य कोई पूर्वजन्म के संस्कार थे । वे नाटक अच्छा लिखते थे और उनका थियेटर खूब चलता था । एक दिन वे रामकृष्ण परमहंस से बोले -"भट्टाचार्य !सुना है तुम भगवान से मिलाते हो , हमें भी मिला दो । " ठाकुर बोले -" सवेरे जल्दी उठ , माँ का नाम ले । शाम को भी माँ का नाम ले। "जी सी बोले -" सवेरे 1 2 बजे सोकर उठता हूँ और रात्रि को 2 बजे सोता हूँ । ऐसे में तुम्हारे नियम का पालन कैसे करूँ ?"
ठाकुर बोले -" अच्छा ! दिन में जब होश आ जाये , समझ में आये , तभी माँ का नाम लिया कर । अच्छा ऐसा कर अपना सारा भार मुझे दे दे । "
जी सी को लगा यह आसान तरीका है , उनने कहा -" अपना सब भार तुमको दिया , अब तुम ही माँ का नाम लेना । " उनके थियेटर में प्रह्लाद नाटक आया । जी सी बुलाने गये -" आप इसमें तो आ सकते हैं । मेरे थियेटर में जरुर आइये । "
ठाकुर बोले -" सब देने के बाद थियेटर तुम्हारा कैसे हो गया , वह तो मेरा है । "
यह बड़े परिवर्तन का दिन था । दिल साफ था , दिया तो पूरा दिया । धीरे -धीरे उनने भाव प्रगाढ़ कर लिया , इतना कि मैं रामकृष्ण का हूँ । सारे ऐब छूट गये , सब बुराइयाँ दूर हो गईं ।' मैं ' रहा ही नहीं , वहां आराध्य आ गये । गुरु कृपा हो तो क्या कुछ संभव नहीं ।
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