'सेवा , त्याग ,प्रेम ,सह्रदयता ,कष्ट -सहिष्णुता आदि परोपकार के अंग हैं । जिस तरह नदियां अपने लिये नहीं बहतीं , वृक्ष अपने फलों का उपभोग स्वयं नहीं करते , बादल अपने लिये नहीं बरसते , उसी तरह सज्जन और विशाल ह्रदय मनुष्य सदैव परोपकार में लगे रहते हैं । '
बेल्जियम के पादरी संत श्री जार्जेज पियरे को जब शांति का नोबल पुरुस्कार दिया गया तो सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ , पर जब लोगों ने उनके कर्तव्य को जाना तो वे भाव विभोर हो उठे ।
युद्ध की भयानक विभीषका से द्रवित संत पियरे ने प्रार्थना ,निवेदन और मनुष्यता के विनाश का दिग्दर्शन कराने वाले उद्बोधन स्थान -स्थान पर संपन्न किये । इसके लिये उन्होंने तीन लाख किलोमीटर की यात्रा संपन्न की । उनका प्रार्थना आंदोलन गति पकड़ता चला गया । दूसरे विश्व युद्ध में उनके द्वारा चलाये गये सेवा -कार्य , विस्थापितों के शिविर तथा नये नगरों को बसाने जैसे कार्य अब इतिहास बन गये हैं । उन्होंने जो कार्य किया उसने मानव जाति को एक मार्ग दिखाया । धन्य हैं ऐसे महामानव !
बेल्जियम के पादरी संत श्री जार्जेज पियरे को जब शांति का नोबल पुरुस्कार दिया गया तो सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ , पर जब लोगों ने उनके कर्तव्य को जाना तो वे भाव विभोर हो उठे ।
युद्ध की भयानक विभीषका से द्रवित संत पियरे ने प्रार्थना ,निवेदन और मनुष्यता के विनाश का दिग्दर्शन कराने वाले उद्बोधन स्थान -स्थान पर संपन्न किये । इसके लिये उन्होंने तीन लाख किलोमीटर की यात्रा संपन्न की । उनका प्रार्थना आंदोलन गति पकड़ता चला गया । दूसरे विश्व युद्ध में उनके द्वारा चलाये गये सेवा -कार्य , विस्थापितों के शिविर तथा नये नगरों को बसाने जैसे कार्य अब इतिहास बन गये हैं । उन्होंने जो कार्य किया उसने मानव जाति को एक मार्ग दिखाया । धन्य हैं ऐसे महामानव !
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