'पथ तय करता है कि जीवन की मंजिल कहां है । '
सन्मार्ग सदा श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर पहुंचाता है , भले ही इसके लिये कितनी भी कसौटियों एवं परीक्षाओं का सामना क्यों न करना पड़े ।
अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं , यह राह कितनी भी साधन -सुविधाओं से भरी -पूरी क्यों न हो इसका अंत अत्यंत भयावह होता है । अनीति एवं दूसरों का अधिकार छीन कर कमाई गई दौलत कभी भी तृप्ति का अहसास नहीं देती । अंतर्मन में उन सभी की आह के चमगादड़ और उल्लू बोलते हैं , जिनका कि अधिकार छीन कर यह दौलत इकट्ठी की है । यह आह इतनी भीषण और मर्मांतक होती है कि ऐश्वर्य एवं वैभव के भंडार में भी व्यक्ति को एक बूंद पानी के लिये तड़पा देती है । ऐसा धन जैसा आया था उससे अनेक गुना बरबाद करके नष्ट हो जाता है ।
सच्चाई के पथ का अंत सदैव अच्छा ही होता है । सच्चा सूरमा वही है , जो सच्चाई की राह पर अडिग रहे और समस्याओं के झंझावातों का साहस , धैर्य एवं विवेकपूर्वक सामना करता रहे । सच्चाई का अंत कभी भी निराशा एवं हताशा में नहीं होता ।
हमें नीति की राह पर चलकर आनंद का उत्सव मनाना चाहिये ।
सन्मार्ग सदा श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर पहुंचाता है , भले ही इसके लिये कितनी भी कसौटियों एवं परीक्षाओं का सामना क्यों न करना पड़े ।
अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं , यह राह कितनी भी साधन -सुविधाओं से भरी -पूरी क्यों न हो इसका अंत अत्यंत भयावह होता है । अनीति एवं दूसरों का अधिकार छीन कर कमाई गई दौलत कभी भी तृप्ति का अहसास नहीं देती । अंतर्मन में उन सभी की आह के चमगादड़ और उल्लू बोलते हैं , जिनका कि अधिकार छीन कर यह दौलत इकट्ठी की है । यह आह इतनी भीषण और मर्मांतक होती है कि ऐश्वर्य एवं वैभव के भंडार में भी व्यक्ति को एक बूंद पानी के लिये तड़पा देती है । ऐसा धन जैसा आया था उससे अनेक गुना बरबाद करके नष्ट हो जाता है ।
सच्चाई के पथ का अंत सदैव अच्छा ही होता है । सच्चा सूरमा वही है , जो सच्चाई की राह पर अडिग रहे और समस्याओं के झंझावातों का साहस , धैर्य एवं विवेकपूर्वक सामना करता रहे । सच्चाई का अंत कभी भी निराशा एवं हताशा में नहीं होता ।
हमें नीति की राह पर चलकर आनंद का उत्सव मनाना चाहिये ।
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