गांधी और टालस्टाय की जीवन प्रणाली में जितनी समता है , उतनी अन्यत्र मिलनी कठिन है । दोनों महापुरुष सादगी के प्रतिरूप थे । गांधीजी ने हमेशा अपने हाथ का कता सूत का कपड़ा पहना ।
टालस्टाय अपने हाथ से तैयार किया जूता काम में लाते थे । टालस्टाय अपने हाथ से बना भोजन खाते थे और यात्रा में अपना सामान गट्ठर की तरह पीठ पर लादकर चलते थे , जबकि वे एक काउंट ( जमींदार ) थे । गांधीजी ने भी औसत भारतीय का जीवन जिया ।
टालस्टाय असहयोग आंदोलन के जन्म दाता थे , गांधी ने उसे क्रिया रूप दिया । अपरिग्रह के दोनों ही प्रबल समर्थक थे । टालस्टाय कहते थे -" जिसके पास दो कोट हों , उसे दूसरा उसे देना चाहिये , जिसके पास नहीं है । " दोनों ही मानव सेवा के व्रतधारी थे । मानवता के सच्चे मार्गदर्शक के रूप में दोनों को पूजा जायेगा ।
टालस्टाय अपने हाथ से तैयार किया जूता काम में लाते थे । टालस्टाय अपने हाथ से बना भोजन खाते थे और यात्रा में अपना सामान गट्ठर की तरह पीठ पर लादकर चलते थे , जबकि वे एक काउंट ( जमींदार ) थे । गांधीजी ने भी औसत भारतीय का जीवन जिया ।
टालस्टाय असहयोग आंदोलन के जन्म दाता थे , गांधी ने उसे क्रिया रूप दिया । अपरिग्रह के दोनों ही प्रबल समर्थक थे । टालस्टाय कहते थे -" जिसके पास दो कोट हों , उसे दूसरा उसे देना चाहिये , जिसके पास नहीं है । " दोनों ही मानव सेवा के व्रतधारी थे । मानवता के सच्चे मार्गदर्शक के रूप में दोनों को पूजा जायेगा ।
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