परमेश्वर स्वयं सबसे महान वैज्ञानिक हैं , फिर उनका बोध भला अवैज्ञानिक कैसे हो सकता है ?
अध्यात्म विद्दा संपूर्णत: वैज्ञानिक है |
विज्ञान ने जड़-जगत के नियम एवं इनके व्यवहारिक उपयोग की खोज की | अध्यात्म ने चेतना की चैतन्यता में क्रियाशील नियम एवं इनकी व्यवहारिक उपयोगिता की विधियाँ खोजीं | वैज्ञानिक अध्यात्म जीवन एवं जगत के सभी आयामों के नियमों की खोज एवं इनके सही सदुपयोग का संपूर्ण ज्ञान है |
मैक्स प्लैंक ने ऊर्जा के क्वांटम सिद्धांत की रचना की | 1919 में उन्हें अपने शोध कार्य के लिये नोबल पुरस्कार मिला , उस अवसर पर उन्होंने कहा --" वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ आध्यात्मिक पवित्रता का जुड़े रहना अनिवार्य है | आध्यात्मिक पवित्रता के साथ किये जाने वाले वैज्ञानिक प्रयोग आत्म-संतोष एवं लोक-हित के दोहरे हित पूरा करते हैं | " उन्होंने यह भी कहा --" विज्ञान यदि मानवता के अहित की दिशा में अपने कदम बढ़ाता है तो वह विज्ञान ही नहीं है | विज्ञान हमेशा लोकहितकारी बना रहे , इसके लिये उसे आध्यात्मिक संवेदनों से स्पंदित होना चाहिये | यही तो वैज्ञनिक अध्यात्म है , जिसके ऐतिहासिक परिद्रश्य पर विचार किया जाना चाहिये | "
दाशराज युद्ध की विभीषिका से व्यापक अशांति फैल चुकी थी | समाज के सभी वर्ग अशांत थे | इस युद्ध में उस युग के सभी विध्वंसक आविष्कारों का प्रयोग हुआ था | जिससे प्रकृति एवं पर्यावरण में हर कहीं असंतुलन था | इसी वजह से बीमारियाँ-महामारियाँ भी खूब फैली हुईं थी |
इस स्थिति से उबरने के लिये सब लोग उस युग के परमज्ञानी ऋषि प्रथ के पास गये | महर्षि प्रथ ने इनकी चिंता का कारण समझा और बोले -- " तुम लोगों का समाधान तब होगा , जब संवेदना एवं सम्रद्धि साथ होंगी | इसके लिये तुम्हे अध्यात्म एवं विज्ञान , दोनों का साथ-साथ उपयोग करना होगा ; क्योंकि आध्यात्मिक साधनाओं से उपजी संवेदना एवं वैज्ञानिक आविष्कारों से पनपी सम्रद्धि के मिलन से ही संपूर्ण शांति संभव है | "
अध्यात्म विद्दा संपूर्णत: वैज्ञानिक है |
विज्ञान ने जड़-जगत के नियम एवं इनके व्यवहारिक उपयोग की खोज की | अध्यात्म ने चेतना की चैतन्यता में क्रियाशील नियम एवं इनकी व्यवहारिक उपयोगिता की विधियाँ खोजीं | वैज्ञानिक अध्यात्म जीवन एवं जगत के सभी आयामों के नियमों की खोज एवं इनके सही सदुपयोग का संपूर्ण ज्ञान है |
मैक्स प्लैंक ने ऊर्जा के क्वांटम सिद्धांत की रचना की | 1919 में उन्हें अपने शोध कार्य के लिये नोबल पुरस्कार मिला , उस अवसर पर उन्होंने कहा --" वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ आध्यात्मिक पवित्रता का जुड़े रहना अनिवार्य है | आध्यात्मिक पवित्रता के साथ किये जाने वाले वैज्ञानिक प्रयोग आत्म-संतोष एवं लोक-हित के दोहरे हित पूरा करते हैं | " उन्होंने यह भी कहा --" विज्ञान यदि मानवता के अहित की दिशा में अपने कदम बढ़ाता है तो वह विज्ञान ही नहीं है | विज्ञान हमेशा लोकहितकारी बना रहे , इसके लिये उसे आध्यात्मिक संवेदनों से स्पंदित होना चाहिये | यही तो वैज्ञनिक अध्यात्म है , जिसके ऐतिहासिक परिद्रश्य पर विचार किया जाना चाहिये | "
दाशराज युद्ध की विभीषिका से व्यापक अशांति फैल चुकी थी | समाज के सभी वर्ग अशांत थे | इस युद्ध में उस युग के सभी विध्वंसक आविष्कारों का प्रयोग हुआ था | जिससे प्रकृति एवं पर्यावरण में हर कहीं असंतुलन था | इसी वजह से बीमारियाँ-महामारियाँ भी खूब फैली हुईं थी |
इस स्थिति से उबरने के लिये सब लोग उस युग के परमज्ञानी ऋषि प्रथ के पास गये | महर्षि प्रथ ने इनकी चिंता का कारण समझा और बोले -- " तुम लोगों का समाधान तब होगा , जब संवेदना एवं सम्रद्धि साथ होंगी | इसके लिये तुम्हे अध्यात्म एवं विज्ञान , दोनों का साथ-साथ उपयोग करना होगा ; क्योंकि आध्यात्मिक साधनाओं से उपजी संवेदना एवं वैज्ञानिक आविष्कारों से पनपी सम्रद्धि के मिलन से ही संपूर्ण शांति संभव है | "
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