' आध्यात्मिक ज्ञान ही वैज्ञानिक कर्म से पनपी सम्रद्धि के सदुपयोग की कुंजी है |'
विख्यात दार्शनिक फ्रांसिस बेकन अपने युग में ज्ञान के पुनर्निर्माण के लिये प्रयत्नशील रहे | उनके एक अनुयायी ने उनसे जानना चाहा कि यह ज्ञान का पुनर्निर्माण क्या है ?
उनका उत्तर था --" एक ऐसे तत्वज्ञान का निर्माण जो धर्म एवं विज्ञान के सम्मिलित सहयोग से विकसित हो | " प्रश्नकर्ता ने पूछा --" क्या यह संभव है ? "
उन्होंने उत्तर दिया --" क्यों नहीं , धर्म के द्वारा हम स्वयं को जानते हैं ; जबकि विज्ञान के द्वारा हम इस जगत को जानते हैं | स्वयं को जाने बिना भला जगत का ज्ञान किस काम का ! इसी तरह जगत के ज्ञान के बिना स्वयं का ज्ञान तो निरुपयोगी ही रह जायेगा | इन दोनों का एक साथ ज्ञान तो तभी संभव है , जब धर्म एवं विज्ञान एक साथ मिलकर कार्य करें | "
अगस्त 1945 में जापान पर हुए परमाणु हमले की खबर से महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन के ह्रदय में पीड़ा का महासागर उफन रहा था , उनकी आँखों से आंसू बरस रहे थे | उन्होंने एक अवसर पर कहा था --" आज के विज्ञान को अध्यात्म का साहचर्य चाहिये | विज्ञान एवं वैज्ञानिक जो शक्ति एवं साधन जुटाते हैं , उनका उपयोग सकारात्मक हो , ऐसा तभी संभव है , जब विज्ञान अध्यात्म की सृजन संवेदना से ओत-प्रोत हो | इसलिये यह आवश्यक है कि जिन्हें विज्ञान पढ़ाया जा रहा है , उन्हें अध्यात्म की भी व्यवहारिक समझ कराई जाये | विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय के बिना विनाशलीलाएँ नहीं रोकी जा सकतीं | "
विख्यात दार्शनिक फ्रांसिस बेकन अपने युग में ज्ञान के पुनर्निर्माण के लिये प्रयत्नशील रहे | उनके एक अनुयायी ने उनसे जानना चाहा कि यह ज्ञान का पुनर्निर्माण क्या है ?
उनका उत्तर था --" एक ऐसे तत्वज्ञान का निर्माण जो धर्म एवं विज्ञान के सम्मिलित सहयोग से विकसित हो | " प्रश्नकर्ता ने पूछा --" क्या यह संभव है ? "
उन्होंने उत्तर दिया --" क्यों नहीं , धर्म के द्वारा हम स्वयं को जानते हैं ; जबकि विज्ञान के द्वारा हम इस जगत को जानते हैं | स्वयं को जाने बिना भला जगत का ज्ञान किस काम का ! इसी तरह जगत के ज्ञान के बिना स्वयं का ज्ञान तो निरुपयोगी ही रह जायेगा | इन दोनों का एक साथ ज्ञान तो तभी संभव है , जब धर्म एवं विज्ञान एक साथ मिलकर कार्य करें | "
अगस्त 1945 में जापान पर हुए परमाणु हमले की खबर से महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन के ह्रदय में पीड़ा का महासागर उफन रहा था , उनकी आँखों से आंसू बरस रहे थे | उन्होंने एक अवसर पर कहा था --" आज के विज्ञान को अध्यात्म का साहचर्य चाहिये | विज्ञान एवं वैज्ञानिक जो शक्ति एवं साधन जुटाते हैं , उनका उपयोग सकारात्मक हो , ऐसा तभी संभव है , जब विज्ञान अध्यात्म की सृजन संवेदना से ओत-प्रोत हो | इसलिये यह आवश्यक है कि जिन्हें विज्ञान पढ़ाया जा रहा है , उन्हें अध्यात्म की भी व्यवहारिक समझ कराई जाये | विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय के बिना विनाशलीलाएँ नहीं रोकी जा सकतीं | "
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