शबरी यद्दपि जाति की भीलनी थी, किंतु उसके ह्रदय में भगवान की सच्ची भक्ति भरी हुई |जहां वह रहती थी वहां अनेक ऋषियों के आश्रम थे | वह प्रतिदिन ऋषियों के आश्रम से सरिता तक का पथ बुहारकर काँटों से रहित कर देती और उपयोग के लिये जंगल से लकड़ियाँ काटकर आश्रम के सामने रख देती | शबरी का यह क्रम महीनों तक चला कितु किसी भी ऋषि को यह पता नहीं चला कि उनकी यवह सेवा करने वाला कौन है | शबरी आधी रात को ही जाकर अपना काम कर आती थी |
भगवान राम जब वनवास गये तो शबरी की कुटी में स्वयं गये और उसका आतिथ्य स्वीकार किया |
भगवान उन्हें ही सर्वाधिक प्यार करते हैं जो सेवा-साधना को सर्वोपरि मानते हैं |
भगवान राम जब वनवास गये तो शबरी की कुटी में स्वयं गये और उसका आतिथ्य स्वीकार किया |
भगवान उन्हें ही सर्वाधिक प्यार करते हैं जो सेवा-साधना को सर्वोपरि मानते हैं |
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