विचारों की स्वीकारोक्ति में वैचारिक रिश्ते पनपते हैं | ऐसे विचार सकारात्मक होते हैं | जब विचारों के एहसास हमारी धड़कनों में संपादित होने लगते हैं तो ऐसे विचार कालजयी होते हैं और जीवन के अबूझ पथ पर प्रकाशस्तंभ बनकर सही राह से परिचय कराते हैं |
ईसा मसीह के बारह शिष्य थे | इनमे से कोई भी शिष्य ईसाई धर्म का प्रवर्तक नहीं माना जाता, परंतु 250 वर्ष पश्चात हुए सेंट पॉल के दिल की धड़कनों में ईसा मसीह के विचार धड़के | उनके विचार सेंट पॉल का एहसास बने और इसी एहसास से ईसाई धर्म का प्रारंभ हुआ |
सेंट पॉल ईसा मसीह के सच्चे शिष्यों से भी अग्रणी हुए, क्योंकि उन्होंने उनके विचारों को स्पर्श किया | यह स्पर्श इतना मर्मस्पर्शी था कि इसने ईसा मसीह और सेंट पॉल के बीच के 250 वर्ष के अंतराल को पाट दिया और प्रभु ईसा के विचार निर्बाध रूप से प्रवाहित होने लगे | यह विचारों का बेजोड़ संबंध है |
मृत्यु का संकट समीप देखकर परेशान होने वाले शिष्यों से महात्मा ईसा ने कहा--" तुम लोग परेशान क्यों हो रहे हो ! आज जबकि तुम मुझ पर मृत्यु की घटा देखकर इतना परेशान हो रहे हो तो यदि सत्य की प्रतिष्ठा में तुम्हारे प्राणों पर संकट आन पड़ा तो उसे किस प्रकार सहन
करोगे ?"
लोग धर्म के नाम पर देवदूतों को मार डालते हैं और समझते हैं कि उन्होंने पुण्य किया, परमात्मा की सेवा की | परम पिता के संदेशवाहक देवदूत के जाने के बाद ही वे उसका और उसके वचनों का महत्व समझ पाते हैं |
ईसा मसीह के बारह शिष्य थे | इनमे से कोई भी शिष्य ईसाई धर्म का प्रवर्तक नहीं माना जाता, परंतु 250 वर्ष पश्चात हुए सेंट पॉल के दिल की धड़कनों में ईसा मसीह के विचार धड़के | उनके विचार सेंट पॉल का एहसास बने और इसी एहसास से ईसाई धर्म का प्रारंभ हुआ |
सेंट पॉल ईसा मसीह के सच्चे शिष्यों से भी अग्रणी हुए, क्योंकि उन्होंने उनके विचारों को स्पर्श किया | यह स्पर्श इतना मर्मस्पर्शी था कि इसने ईसा मसीह और सेंट पॉल के बीच के 250 वर्ष के अंतराल को पाट दिया और प्रभु ईसा के विचार निर्बाध रूप से प्रवाहित होने लगे | यह विचारों का बेजोड़ संबंध है |
मृत्यु का संकट समीप देखकर परेशान होने वाले शिष्यों से महात्मा ईसा ने कहा--" तुम लोग परेशान क्यों हो रहे हो ! आज जबकि तुम मुझ पर मृत्यु की घटा देखकर इतना परेशान हो रहे हो तो यदि सत्य की प्रतिष्ठा में तुम्हारे प्राणों पर संकट आन पड़ा तो उसे किस प्रकार सहन
करोगे ?"
लोग धर्म के नाम पर देवदूतों को मार डालते हैं और समझते हैं कि उन्होंने पुण्य किया, परमात्मा की सेवा की | परम पिता के संदेशवाहक देवदूत के जाने के बाद ही वे उसका और उसके वचनों का महत्व समझ पाते हैं |
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