' भक्ति के बिना शक्ति के सदुपयोग की कोई संभावना नहीं, भक्ति न हो तो बुद्धि विवेकरहित होती है और बल निरंकुश व दिशाहीन | भक्ति के बिना सृजनात्मक सरंजाम भी संहारक हो जाते हैं | '
मानव एवं प्रकृति में अटूट एवं गहरे संबंध हैं | इन संबंधों की प्रगाढ़ता में मानव सुखी व संपन्न होता है एवं प्रकृति संतुलित होती है तथा वह अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करती
है , परंतु जैसे ही इन संबंधों की कड़ियाँ टूटती-बिखरती हैं, विपदाओं एवं आपदाओं की श्रंखला चल पड़ती है | इस असंतुलन से मानव विपदाओं से घिर जाता है, उसे रोग-शोक घेर लेते हैं |
प्रकृति की शक्ति सर्वोपरि है | इसे मानवीय पुरुषार्थ जीत नहीं सकता है |
आज 'प्रकृति माता ' हमसे नाराज है ---एक ओर प्रकृति के असंतुलन से उपजी भयावह आपदाएं हैं और दूसरी ओर हैं मानव की दूषित प्रवृतियां | आज का मनुष्य जीवन का मर्म ही भूल चुका है | तृष्णा और लालसाओं के कारण उसकी मानवीय गरिमा मृतप्राय है जो आतंक और संहार के सरंजाम जुटाती है |
हमारी धरती और मानवता के उज्जवल भविष्य का एक ही आधार है---- ' अध्यात्म '
अध्यात्म का अर्थ है---- भावनाओं का, संवेदनाओं का परिष्कार |
मनुष्य की भावनाओं और संवेदनाओं को परिष्कृत करती है---- भक्ति |
भक्ति ही है जो मनुष्य के ह्रदय को विराट की पवित्रता के पुलकन से भरती है |
यदि मनुष्य की भावनाएं परिष्कृत हो जाएँ तो ' मारो और मरो ' की रट लगाने वाला मनुष्य
' जियो और जीने दो ' की सोच सकता है और तभी लग पायेगा उसकी कुत्सित और कलुषित लालसाओं पर अंकुश, जो प्रकृति को कुपित एवं क्षुब्ध किये है |
मानव एवं प्रकृति में अटूट एवं गहरे संबंध हैं | इन संबंधों की प्रगाढ़ता में मानव सुखी व संपन्न होता है एवं प्रकृति संतुलित होती है तथा वह अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करती
है , परंतु जैसे ही इन संबंधों की कड़ियाँ टूटती-बिखरती हैं, विपदाओं एवं आपदाओं की श्रंखला चल पड़ती है | इस असंतुलन से मानव विपदाओं से घिर जाता है, उसे रोग-शोक घेर लेते हैं |
प्रकृति की शक्ति सर्वोपरि है | इसे मानवीय पुरुषार्थ जीत नहीं सकता है |
आज 'प्रकृति माता ' हमसे नाराज है ---एक ओर प्रकृति के असंतुलन से उपजी भयावह आपदाएं हैं और दूसरी ओर हैं मानव की दूषित प्रवृतियां | आज का मनुष्य जीवन का मर्म ही भूल चुका है | तृष्णा और लालसाओं के कारण उसकी मानवीय गरिमा मृतप्राय है जो आतंक और संहार के सरंजाम जुटाती है |
हमारी धरती और मानवता के उज्जवल भविष्य का एक ही आधार है---- ' अध्यात्म '
अध्यात्म का अर्थ है---- भावनाओं का, संवेदनाओं का परिष्कार |
मनुष्य की भावनाओं और संवेदनाओं को परिष्कृत करती है---- भक्ति |
भक्ति ही है जो मनुष्य के ह्रदय को विराट की पवित्रता के पुलकन से भरती है |
यदि मनुष्य की भावनाएं परिष्कृत हो जाएँ तो ' मारो और मरो ' की रट लगाने वाला मनुष्य
' जियो और जीने दो ' की सोच सकता है और तभी लग पायेगा उसकी कुत्सित और कलुषित लालसाओं पर अंकुश, जो प्रकृति को कुपित एवं क्षुब्ध किये है |
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