संस्कृति की सेवा करने वाले श्रीपाद दामोदर सातवलेकर का जन्म 19 सितम्बर 1867 को महाराष्ट्र की सावंतवाड़ी रियासत में हुआ था | आर्य समाज से प्रभावित श्री सातवलेकर जी ने सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि भाष्य का मराठी भाषा में अनुवाद किया । वे प्रसिद्ध हुए अपने ' वैदिक राष्ट्रगीत ' लेख के प्रकाशित होने पर । अँग्रेज सरकार ने इसे क्रांति की चिनगारी माना और इसकी प्रतियाँ जब्त कर डालीं । इससे अप्रभावित सातवलेकर जी गुरुकुल काँगड़ी हरिद्वार में आकर रहे और यहीं से अपनी राष्ट्रवादी सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित विचारों का निरंतर प्रकाशन करते रहे ।
जब प्रशासन को उनके गुरुकुल में होने की जानकारी मिली तो उन्हें गिरफ्तार करने 400 सिपाहियों की टुकड़ी सहारनपुर से आई । उनपर राजद्रोह का मुकदमा चला, परंतु वे आरोप मुक्त हुए । बाद में 1920 के दशक में वे औंध आकर बस गये । यहां उन्होंने स्वाध्याय मंडल वैदिक अनुसंधान केंद्र की स्थापना की । चारों वेदों की शुद्ध संहितायों का उनने यहीं से प्रकाशन किया ।
82 वर्ष की आयु में वे दक्षिण गुजरात आकर बस गये । इस आयु में उन्होंने जो कार्य किया वह अनोखा है । वस्तुत: उमंग हो तो, दैवी शक्ति कार्य कराती है । श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी का जीवन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
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