एडविन अर्नाल्ड की पुस्तक है--' गॉड स्पीक्स ' इसमें वे लिखते हैं कि बुद्ध के अंत:करण में । जिज्ञासा जन्मजात थी | उनके पिता शुद्धोधन ने सारे सरंजाम जुटाए कि कहीं भी, कभी भी उनके पुत्र को दुःख देखने को न मिले | लेकिन जब उन्होंने एक रोगी, वृद्ध और एक मृत पुरुष को देखा तो उनके अंदर से तीव्र जिज्ञासा पैदा हुई कि यह कौन हैं, क्या यह हाल मेरा भी होगा ? यदि हाँ तो किसी ने मुक्ति का, दुःख के निवारण का उपाय क्यों नहीं सोचा ? इस जिज्ञासा से ही उन्हें आत्मबोध हुआ ।
एडविन अर्नाल्ड अपनी इस पुस्तक में लिखते हैं कि जब वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की स्थिति में निरंजना नदी के किनारे तप कर रहे थे तो कभी-कभी उनके मन में पाशविकता के संस्कार बलात हावी होने लगे । बुद्ध सोचने लगे कहाँ तो हम अच्छे सुख-साधनों से युक्त थे और कहाँ सूखकर काँटा हो गये । किस चक्कर में हम पड़ गये । बुद्ध का मन यह सोच रहा था, लेकिन आत्मा तो मुक्ताकाश में आनंद में विचरण कर रही थी, क्रमश: पवित्र हो रही थी । वे सोच रहे थे,
इतने में वहां बिंबसार आये और बोले-- " भगवान ! आप एक महाराजा ! आपका एक देवपुरुष जैसा आकर्षण ! आप कहाँ इस चक्कर में पड़े हो ? यही समय है, वापस महलों की ओर चलें । "
बिंबसार के माध्यम से आसुरी सत्ताओं ने बुद्ध के मन को तोड़ने का प्रयास
किया ।
बुद्ध बोले--" हमारा मन भी शुरू में यही कह रहा था, पर हमने अपने आत्मबल द्वारा अपने मन पर विजय प्राप्त कर ली है । सुसंसकारों द्वारा कुसंस्कारों पर विजय प्राप्त कर ली है । हमारी प्रबल जिज्ञासा है कि हम आत्मबोध को प्राप्त हों । "
' शाश्वत की प्राप्ति के लिये विरह - वेदना - व्याकुलता की अनुभूति ही जिज्ञासा है । प्रलोभन जिसे विचलित न कर पाये , सतत जिसकी जिज्ञासा बढ़ती चली जाये ऐसा जिज्ञासु साधक भगवान का भक्त बन जाता है । '
एडविन अर्नाल्ड अपनी इस पुस्तक में लिखते हैं कि जब वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की स्थिति में निरंजना नदी के किनारे तप कर रहे थे तो कभी-कभी उनके मन में पाशविकता के संस्कार बलात हावी होने लगे । बुद्ध सोचने लगे कहाँ तो हम अच्छे सुख-साधनों से युक्त थे और कहाँ सूखकर काँटा हो गये । किस चक्कर में हम पड़ गये । बुद्ध का मन यह सोच रहा था, लेकिन आत्मा तो मुक्ताकाश में आनंद में विचरण कर रही थी, क्रमश: पवित्र हो रही थी । वे सोच रहे थे,
इतने में वहां बिंबसार आये और बोले-- " भगवान ! आप एक महाराजा ! आपका एक देवपुरुष जैसा आकर्षण ! आप कहाँ इस चक्कर में पड़े हो ? यही समय है, वापस महलों की ओर चलें । "
बिंबसार के माध्यम से आसुरी सत्ताओं ने बुद्ध के मन को तोड़ने का प्रयास
किया ।
बुद्ध बोले--" हमारा मन भी शुरू में यही कह रहा था, पर हमने अपने आत्मबल द्वारा अपने मन पर विजय प्राप्त कर ली है । सुसंसकारों द्वारा कुसंस्कारों पर विजय प्राप्त कर ली है । हमारी प्रबल जिज्ञासा है कि हम आत्मबोध को प्राप्त हों । "
' शाश्वत की प्राप्ति के लिये विरह - वेदना - व्याकुलता की अनुभूति ही जिज्ञासा है । प्रलोभन जिसे विचलित न कर पाये , सतत जिसकी जिज्ञासा बढ़ती चली जाये ऐसा जिज्ञासु साधक भगवान का भक्त बन जाता है । '
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