गौतम बुद्ध के समय गुजरात में एक सेठ हुए हैं--नाम था झगड़ू शाह । उनका वैभव अपार था, महाराज तक उनसे ऋण लेते थे । तक्षशिला का एक स्नातक आपने शिक्षक के परामर्श से उनके पास सहायता लेने आया । जब मिला तो वे आवास में थे । देखा एक दुबला-पतला व्यक्ति झोंपड़ी में न्यूनतम साधनों में रह रहा है । उसे शोध-संस्थान हेतु अच्छी मोटी मदद चाहिये थी । सोचा, इनसे क्या मांगे, ये खुद दरिद्र हैं ---बोला हम कल चले जायेंगे, आपको तकलीफ नहीं देंगे । सेठ ने कहा---" आज अतिथिशाला में रुक जाओ, भोजन कर लो । कल मिलकर चले जाना । "
अतिथिशाला देखी तो वैभव का शिखर, जो महलों को भी फीका कर दे । बड़ा हतप्रभ हुआ । वे झोंपड़ी में रहते हैं और यहाँ अतिथियों के लिये इतना सब कुछ । भोजन किया, विश्राम किया , अगले दिन मिलने गया तो पूछा । सेठ जी ने कहा------- " हम धन के न्यासी हैं । भगवती लक्ष्मी ने हमें प्रमाणिक मानकर धन-संपदा दी है । हम इसका उपयोग सेवा - परमार्थ के लिये ही करते हैं "
इस स्नातक ने विलक्षण शांति व सामंजस्य के सेठ में दर्शन किये । सहायता लेकर वह आया ।
अतिथिशाला देखी तो वैभव का शिखर, जो महलों को भी फीका कर दे । बड़ा हतप्रभ हुआ । वे झोंपड़ी में रहते हैं और यहाँ अतिथियों के लिये इतना सब कुछ । भोजन किया, विश्राम किया , अगले दिन मिलने गया तो पूछा । सेठ जी ने कहा------- " हम धन के न्यासी हैं । भगवती लक्ष्मी ने हमें प्रमाणिक मानकर धन-संपदा दी है । हम इसका उपयोग सेवा - परमार्थ के लिये ही करते हैं "
इस स्नातक ने विलक्षण शांति व सामंजस्य के सेठ में दर्शन किये । सहायता लेकर वह आया ।
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