संत राबिया मक्का की राह पर चलीं | उनकी आयु हो गई थी | इस उम्र में उन्हें पैदल आता देखकर स्वयं काबा उनके स्वागत हेतु आये, उन्हें दर्शन दिये | इब्राहिम-बिन-अदहम 14 वर्ष की यात्रा के बाद मक्का पहुंचे | नमाज के बाद उन्हें अनुभूति हुई कि काबा तो वहां नहीं हैं | वे बड़े दुखी हुए | आखिर ऐसा क्यों हुआ कि वे इतनी दूर से दीदार को आये और काबा ने दर्शन नहीं दिये | इतने में उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी--- " ऐ इब्राहीम ! काबा इस समय राबिया के इस्तिक्वाल हेतु गये हैं, इसलिए तुम्हे दिखाई नहीं दिये, थोड़ा सब्र करो | "
इसी समय उन्हें राबिया दिखाई दी, उनने उसे लताड़ा तो राबिया बोली--- " इब्राहिम ! तुम नमाज तो करते रहे, पर मैंने अपने जीवन की यात्रा बेखुदी और दीनता से तय की है, इसलिये काबा ने मुझे दर्शन दिये | इसमें काबा का कोई पक्षपात नहीं, यह तो प्रार्थना - पुकार की तीव्रता है | "
राबिया जब प्रार्थना करतीं थीं , वहां का वातावरण आश्चर्यजनक ढंग से शांत हो जाता था | उनकी आँखों में चमक थी, वाणी से नूर टपकता था | यह सब उनके जीवन के अंत तक बना रहा |
अंत में देह छोड़ने से पहले वह अपने मालिक की इबादत कर रहीं थीं------ " हे परवरदिगार ! यदि मैं नरक के डर से तेरी इबादत करती होऊं तो मुझे नरक की आग में जला देना और स्वर्ग के लोभ से तेरी याद करूँ तो वह स्वर्ग मेरे लिये हराम हो | किंतु मैं तेरे लिये ही तेरी इबादत करती होऊं तो तुम अपनी अपार कृपा से मुझे वंचित न रखना | " इतना कहने के बाद उनका शरीर शांत हो गया |
राबिया का जीवन बहुत दुःख में बीता | दारुण दशा में उन्होंने प्रभु से इबादत की-- " मेरा दुःख मेरी तपस्या बने ऐसी कृपा करना | दुःख में पीड़ा से चीत्कार न करके, बस, तेरी याद कर सकूँ, ऐसी कृपा करना | मैं तुझे भूलूँ नहीं और तू मुझ पर कृपालु रहे, बस, यही मेरी कामना है | "
राबिया का जीवन तप और प्रेम का अदभुत संगम था |
इसी समय उन्हें राबिया दिखाई दी, उनने उसे लताड़ा तो राबिया बोली--- " इब्राहिम ! तुम नमाज तो करते रहे, पर मैंने अपने जीवन की यात्रा बेखुदी और दीनता से तय की है, इसलिये काबा ने मुझे दर्शन दिये | इसमें काबा का कोई पक्षपात नहीं, यह तो प्रार्थना - पुकार की तीव्रता है | "
राबिया जब प्रार्थना करतीं थीं , वहां का वातावरण आश्चर्यजनक ढंग से शांत हो जाता था | उनकी आँखों में चमक थी, वाणी से नूर टपकता था | यह सब उनके जीवन के अंत तक बना रहा |
अंत में देह छोड़ने से पहले वह अपने मालिक की इबादत कर रहीं थीं------ " हे परवरदिगार ! यदि मैं नरक के डर से तेरी इबादत करती होऊं तो मुझे नरक की आग में जला देना और स्वर्ग के लोभ से तेरी याद करूँ तो वह स्वर्ग मेरे लिये हराम हो | किंतु मैं तेरे लिये ही तेरी इबादत करती होऊं तो तुम अपनी अपार कृपा से मुझे वंचित न रखना | " इतना कहने के बाद उनका शरीर शांत हो गया |
राबिया का जीवन बहुत दुःख में बीता | दारुण दशा में उन्होंने प्रभु से इबादत की-- " मेरा दुःख मेरी तपस्या बने ऐसी कृपा करना | दुःख में पीड़ा से चीत्कार न करके, बस, तेरी याद कर सकूँ, ऐसी कृपा करना | मैं तुझे भूलूँ नहीं और तू मुझ पर कृपालु रहे, बस, यही मेरी कामना है | "
राबिया का जीवन तप और प्रेम का अदभुत संगम था |
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