इस संसार में मनुष्य जीवन से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं | मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ प्राणी है, इसलिये श्रेष्ठ कर्म करना भी उसके हाथ में है | मनुष्य को अपनी क्षमतानुसार कर्तव्य कर्म करने से पीछे नहीं हटना चाहिये |
एक व्यक्ति स्वामी रामतीर्थ से मिलने पहुंचा और उनके चरणों में गिरकर रोते हुए कहने लगा---" महाराज ! मैंने लोगों का खूब भला किया, पर किसी ने भी मेरी भलाई का उत्तर नहीं दिया | मुझे जीवन भर उपेक्षा ही मिली | " स्वामी रामतीर्थ बोले-- " मित्र ! बादलों को देखते हो, वे जीवन भर एक जगह से पानी उठाकर दूसरी जगह गिराते हैं । पेड़ जीवन भर कष्ट उठाकर दूसरों को छाया और फल देते हैं । नदी तमाम कठिनाइयों से गुजर कर भी लोगों की प्यास बुझाती है । धरती सारा बोझ सहनकर भी लोगों के जीवन में खुशियाँ लाती है । इनका किसने क्या भला कर दिया ?
लोग पेड़ों को काटते हैं, धरती पर मल-मूत्र करते हैं, नदियों को गंदा करते हैं, पर इस कारण वे दूसरों का भला करना नहीं छोड़ते । बदले की भावना से किया गया भला, एक तरह का व्यापार है और निष्काम भाव से किया गया भला ही परोपकार है । इस मार्ग पर चलोगे तो सदा संतुष्ट
रहोगे । " धर्म का मर्म उस व्यक्ति की समझ में आ गया ।
एक व्यक्ति स्वामी रामतीर्थ से मिलने पहुंचा और उनके चरणों में गिरकर रोते हुए कहने लगा---" महाराज ! मैंने लोगों का खूब भला किया, पर किसी ने भी मेरी भलाई का उत्तर नहीं दिया | मुझे जीवन भर उपेक्षा ही मिली | " स्वामी रामतीर्थ बोले-- " मित्र ! बादलों को देखते हो, वे जीवन भर एक जगह से पानी उठाकर दूसरी जगह गिराते हैं । पेड़ जीवन भर कष्ट उठाकर दूसरों को छाया और फल देते हैं । नदी तमाम कठिनाइयों से गुजर कर भी लोगों की प्यास बुझाती है । धरती सारा बोझ सहनकर भी लोगों के जीवन में खुशियाँ लाती है । इनका किसने क्या भला कर दिया ?
लोग पेड़ों को काटते हैं, धरती पर मल-मूत्र करते हैं, नदियों को गंदा करते हैं, पर इस कारण वे दूसरों का भला करना नहीं छोड़ते । बदले की भावना से किया गया भला, एक तरह का व्यापार है और निष्काम भाव से किया गया भला ही परोपकार है । इस मार्ग पर चलोगे तो सदा संतुष्ट
रहोगे । " धर्म का मर्म उस व्यक्ति की समझ में आ गया ।
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