वक्त थमता नहीं और न ही इसे थामा जा सकता है | इसको थामने का प्रयास करने वाले कहां गये, कोई उन्हें जानता तक नहीं है | अहंकारी वक्त को थाम लेने का दंभ भरता है, परंतु जगजाहिर है कि रावण, कंस, जरासंध जैसे शक्तिशाली राक्षस भी उसे थाम नहीं पाए, कालचक्र के घूमते पहियों में पिस गये | वक्त किसी का नहीं होता, पर अहंकारी कहता है कि वक्त मेरा है | हाँ यह हो सकता है कि किसी कालखंड में उदित पुण्य के प्रभाव से सब कुछ अनुकूल हो रहा है और जब तक पुण्य का प्रभाव चुक नहीं जाता है, अनीति, अत्याचार करने पर भी कुछ नहीं होता | इससे ऐसा लगता है कि हमने काल पर नियंत्रण कर लिया है, परंतु जब पुण्य का प्रभाव चुक जाता है तो वक्त के थपेड़ों से वह भी बच नहीं पाता है |
असुरों ने अपने पराक्रम और बुद्धिकौशल से 21 बार देवताओं को हराया और इंद्रासन पर बैठे, पर देर तक वहां स्थिर न रह सके | हर बार उन्हें स्वर्ग छोड़कर जाना पड़ा |
देवऋषि नारद ने पिता ब्रह्मा से कारण पूछा तो उनने कहा--- "वत्स ! बल द्वारा सामयिक रूप से ऐश्वर्य प्राप्त तो किया जा सकता है, पर उसका उपभोग केवल संयमी ही कर पाते हैं | संयम की सतत उपेक्षा कर बल का दुरूपयोग करने वाले असुर जीतने पर भी इंद्रासन का उपभोग कैसे कर सकते हैं |
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