श्रीमदभगवद्गीता में कर्म की व्याख्या करते हुए भगवान कहते हैं कि जो त्याग करना सिखाए, वही कर्म है | निष्काम कर्म ही वास्तविक कर्म है । जो नया सृजन करे, नये युग को लाने में योगदान दें, वही सच्चे कर्म हैं । जगत से भागना नहीं--- कर्मक्षेत्र में--- युद्धक्षेत्र में लगे रहना है, सतत कर्म करते चलना है ।
कहा जाता है कि धर्मतत्व की खोज में ईसा भारतवर्ष आये थे और कई वर्षों तक यहाँ के हिंदू और बौद्ध योगियों के सान्निध्य में रहकर उनने भारतीय सिद्धांतों और दर्शन का बड़ा गहन अध्ययन किया था । ईसा कहते थे--- " सुई के छेद में होकर ऊँट निकल जाये, पर स्वर्ग के दरवाजे में होकर धन के बलबूते निकल पाना किसी के लिये संभव नहीं । "
पूंजीपति उनकी यह आलोचना सहन नहीं कर पाये, पुरोहित व पुजारी उनके खिलाफ हो गये ।
ईसा चले गये पर उनके उपदेश जिंदा रहे । एक कर्मयोगी की तरह उन्होंने जीवन जिया ।
वे कहते थे मेरा मुख्य काम तो पीड़ितों की सेवा करना है, लोगों का दुःख-दरद दूर करना है ।
शास्त्रार्थ तथा व्याख्यान तो जीवन के साधारण कार्य हैं "
कहा जाता है कि धर्मतत्व की खोज में ईसा भारतवर्ष आये थे और कई वर्षों तक यहाँ के हिंदू और बौद्ध योगियों के सान्निध्य में रहकर उनने भारतीय सिद्धांतों और दर्शन का बड़ा गहन अध्ययन किया था । ईसा कहते थे--- " सुई के छेद में होकर ऊँट निकल जाये, पर स्वर्ग के दरवाजे में होकर धन के बलबूते निकल पाना किसी के लिये संभव नहीं । "
पूंजीपति उनकी यह आलोचना सहन नहीं कर पाये, पुरोहित व पुजारी उनके खिलाफ हो गये ।
ईसा चले गये पर उनके उपदेश जिंदा रहे । एक कर्मयोगी की तरह उन्होंने जीवन जिया ।
वे कहते थे मेरा मुख्य काम तो पीड़ितों की सेवा करना है, लोगों का दुःख-दरद दूर करना है ।
शास्त्रार्थ तथा व्याख्यान तो जीवन के साधारण कार्य हैं "
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