' ईश्वरप्रदत्त धन-वैभव हमें साँसों के रूप में मिला है | उसे व्यर्थ गँवाने, कुकर्मों में लगाने अथवा
श्रेष्ठ उद्देश्यों व कार्यों में नियोजित कर जीवन लाभ प्राप्त करने के चयन को देखकर ही मनुष्य की मूर्खता एवं बुद्धिमत्ता का परिचय मिलता है ।
धन कमा लेना सरल है, पर उसका सदुपयोग अति कठिन है । लोग कमाते तो बहुत हैं, पर उसे व्यसन, विलासिता एवं अहंकार की पूर्ति के कामों में अपव्ययी बनकर गँवा देते हैं ।
कुछ लालची, संग्रही कंजूसी करते हैं-- न स्वयं उसका कुछ लाभ उठाते हैं और न दूसरों को उठाने देते हैं । संग्रह सड़न पैदा करता है, उससे अहंकार बढ़ता है, दुर्व्यसन उत्पन्न होते हैं ।
धन जो कमाया गया है, उसका सदुपयोग हो यही बुद्धिमता है ।
अमरावती के नगर सेठ की मृत्यु हुई । मुनीम ने सबसे बड़े पुत्र को पिता की संपति का
हिसाब-किताब समझाया । सब बताने के बाद वह नीचे बने तलघर में ले गया जहाँ अरबों-खरबों की संपति से तिजोरियाँ भरी पड़ी थीं ।
मुनीम ने कहा-- " मालिक, यह सब आपके पूर्वजों की कमाई हुई है । "
सेठ पुत्र उदास हो गया । मुनीम ने पूछा आप उदास क्यों हो गये ? सेठ पुत्र बोला--- " इतनी संपति जोड़-जोड़कर रखते गये किंतु मेरे पूर्वज इसमें से कुछ भी अपने साथ न ले जा सके । "
मुनीम ने कहा-- " कोई ले भी जाता है संपति, जो वे ले जाते । "
सेठ पुत्र ने कहा तब ठीक है । इसके सदुपयोग की बात सोची जानी चाहिये ।
और कहते हैं कि पीढ़ियों से पड़ी धन-दौलत को उसने स्कूल, अतिथिगृह, अस्पताल और गरीब बच्चों की छात्रवृति के लिये तुरंत दान कर दिया ।
जीवन के पल-पल का सदुपयोग ही सार्थक जीवन है ।
श्रेष्ठ उद्देश्यों व कार्यों में नियोजित कर जीवन लाभ प्राप्त करने के चयन को देखकर ही मनुष्य की मूर्खता एवं बुद्धिमत्ता का परिचय मिलता है ।
धन कमा लेना सरल है, पर उसका सदुपयोग अति कठिन है । लोग कमाते तो बहुत हैं, पर उसे व्यसन, विलासिता एवं अहंकार की पूर्ति के कामों में अपव्ययी बनकर गँवा देते हैं ।
कुछ लालची, संग्रही कंजूसी करते हैं-- न स्वयं उसका कुछ लाभ उठाते हैं और न दूसरों को उठाने देते हैं । संग्रह सड़न पैदा करता है, उससे अहंकार बढ़ता है, दुर्व्यसन उत्पन्न होते हैं ।
धन जो कमाया गया है, उसका सदुपयोग हो यही बुद्धिमता है ।
अमरावती के नगर सेठ की मृत्यु हुई । मुनीम ने सबसे बड़े पुत्र को पिता की संपति का
हिसाब-किताब समझाया । सब बताने के बाद वह नीचे बने तलघर में ले गया जहाँ अरबों-खरबों की संपति से तिजोरियाँ भरी पड़ी थीं ।
मुनीम ने कहा-- " मालिक, यह सब आपके पूर्वजों की कमाई हुई है । "
सेठ पुत्र उदास हो गया । मुनीम ने पूछा आप उदास क्यों हो गये ? सेठ पुत्र बोला--- " इतनी संपति जोड़-जोड़कर रखते गये किंतु मेरे पूर्वज इसमें से कुछ भी अपने साथ न ले जा सके । "
मुनीम ने कहा-- " कोई ले भी जाता है संपति, जो वे ले जाते । "
सेठ पुत्र ने कहा तब ठीक है । इसके सदुपयोग की बात सोची जानी चाहिये ।
और कहते हैं कि पीढ़ियों से पड़ी धन-दौलत को उसने स्कूल, अतिथिगृह, अस्पताल और गरीब बच्चों की छात्रवृति के लिये तुरंत दान कर दिया ।
जीवन के पल-पल का सदुपयोग ही सार्थक जीवन है ।
No comments:
Post a Comment