निष्काम कर्म के आचरण से मनुष्य का अंत:करण नितांत निर्मल हो जाता है और साक्षात् भगवदप्राप्ति हेतु अनुभूत ज्ञान का पवित्र स्थल बन जाता है |
गीता का सिद्धांत है कि मनुष्य को कर्म करना चाहिये, कर्मयोगी बने लेकिन कर्म के फल की इच्छा का परित्याग करना चाहिये | यह कार्य कठिन अवश्य है लेकिन संसार में अनेक महान विभूति हैं जिन्होंने इसे अपने आचरण में उतारा है ---------
एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पुरुष सामान्य वेशभूषा में जा रहा था । सड़क के किनारे खड़े बालक ने झिझक के साथ आगे बढ़कर कुछ राशि की गुहार की । उस गणमान्य नागरिक ने कहा--- "बेटे ! यह तो तुम्हारी पढ़ने-लिखने की उम्र है, भीख क्यों मांगते हो ? " लड़के ने करुण स्वर में कहा-- " मेरी माता बीमार पड़ी हैं, छोटा भाई भूखा है । कल से हम सबके मुँह में अन्न का एक भी दाना नहीं गया है । पिता एक वर्ष पूर्व गुजर गये । मैं विवश होकर आपसे कह रहा हूँ । "
उन सज्जन ने कुछ सिक्के, जिनसे सात दिन की दवा व खाने की व्यवस्था हो जाये, देकर घर का पता पूछा और कहा-- " मैं कोई व्यवस्था करता हूँ । " वे स्वयं उसके घर गये, सब देखा । फिर बच्चे की कापी से एक पेज फाड़कर कुछ लिखा और कहा-- " जो डॉक्टर आयें उन्हें यह दिखा देना ।'
बच्चा डॉक्टर को लेकर आया । डॉक्टर ने आकर देखा, पढ़ा तो खुशी के मारे आँखों में अश्रु आ गये । बोला-- " बहन ! तुम्हारे पास तो इस देश के राजा स्वयं किंग जोसेफ दिव्तीय आये थे । उन्होंने लिखा है तुम्हारे इलाज की श्रेष्ठतम व्यवस्था की जाये और बड़ी धन राशि की व्यवस्था भी की जाये । " माँ ने कहा-- " जिस देश का राजा इतना दयालु है, वहां की जनता को क्या कष्ट हो सकता है ' किंग जोसेफ दिव्तीय सादा वेश में निरंतर भ्रमण करते थे, उनके राज्य में कोई दुखी नहीं था ।
गीता का सिद्धांत है कि मनुष्य को कर्म करना चाहिये, कर्मयोगी बने लेकिन कर्म के फल की इच्छा का परित्याग करना चाहिये | यह कार्य कठिन अवश्य है लेकिन संसार में अनेक महान विभूति हैं जिन्होंने इसे अपने आचरण में उतारा है ---------
एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पुरुष सामान्य वेशभूषा में जा रहा था । सड़क के किनारे खड़े बालक ने झिझक के साथ आगे बढ़कर कुछ राशि की गुहार की । उस गणमान्य नागरिक ने कहा--- "बेटे ! यह तो तुम्हारी पढ़ने-लिखने की उम्र है, भीख क्यों मांगते हो ? " लड़के ने करुण स्वर में कहा-- " मेरी माता बीमार पड़ी हैं, छोटा भाई भूखा है । कल से हम सबके मुँह में अन्न का एक भी दाना नहीं गया है । पिता एक वर्ष पूर्व गुजर गये । मैं विवश होकर आपसे कह रहा हूँ । "
उन सज्जन ने कुछ सिक्के, जिनसे सात दिन की दवा व खाने की व्यवस्था हो जाये, देकर घर का पता पूछा और कहा-- " मैं कोई व्यवस्था करता हूँ । " वे स्वयं उसके घर गये, सब देखा । फिर बच्चे की कापी से एक पेज फाड़कर कुछ लिखा और कहा-- " जो डॉक्टर आयें उन्हें यह दिखा देना ।'
बच्चा डॉक्टर को लेकर आया । डॉक्टर ने आकर देखा, पढ़ा तो खुशी के मारे आँखों में अश्रु आ गये । बोला-- " बहन ! तुम्हारे पास तो इस देश के राजा स्वयं किंग जोसेफ दिव्तीय आये थे । उन्होंने लिखा है तुम्हारे इलाज की श्रेष्ठतम व्यवस्था की जाये और बड़ी धन राशि की व्यवस्था भी की जाये । " माँ ने कहा-- " जिस देश का राजा इतना दयालु है, वहां की जनता को क्या कष्ट हो सकता है ' किंग जोसेफ दिव्तीय सादा वेश में निरंतर भ्रमण करते थे, उनके राज्य में कोई दुखी नहीं था ।
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