' दुनिया में सबसे कमजोर और सबसे शक्तिशाली मन ही है | जिसका अपने मन पर संपूर्ण अधिकार हो जाता है, उसके आगे शक्ति-सामर्थ्य के सारे मार्ग खुल जाते हैं और जो अपने मन को ही काबू में नहीं कर पाता, वो दीन-दुर्बल और असहाय ही बना रहता है । '
स्वयं को जानने के लिये, मन को स्थिर करने के लिये, शांति-सुख पाने के लिये ध्यान से श्रेष्ठ और कुछ नहीं । इसलिये ध्यान को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाना चाहिये ।
स्वयं को जानने के लिये, मन को स्थिर करने के लिये, शांति-सुख पाने के लिये ध्यान से श्रेष्ठ और कुछ नहीं । इसलिये ध्यान को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बनाना चाहिये ।
No comments:
Post a Comment