गुरु शिष्य की प्रकृति को परखता है । तदनुसार चलाता है । श्रद्धावान शिष्य जाल-जंजाल न बुनकर शिखर तक पहुँच जाते हैं ।
रामकृष्ण परमहंस के अवसान के तुरंत बाद शिष्यगणों में व्याप्त अवसाद को विवेकानंद ने अपनी विवेक द्रष्टि से देखा और उनका समाधान करते हुए कहा--- " भाइयों ! हमारे गुरु हमें कोई आश्रम, मठ, संपति, ट्रस्ट देकर नहीं गये, पर एक द्रष्टि दे गये हैं कि हमें कैसा जीवन जीना चाहिये । यदि हमें सामर्थ्यवान, वैभववान बनना है तो लोक-कल्याण के लिये, गुरु के संदेश को विश्वव्यापी बनाने के लिये गुरुदेव ने जो संयमरूपी शिक्षा हमें दी है, वही हमारे लिये बहुत है । संस्कृति के पुनर्जीवन हेतु अनिवार्य साधन हम उसी से एकत्र कर लेंगे । "
उनके संदेश में जैसे जादू था, अवसाद दूर हुआ । सभी संगठित हो जुट पड़े, समय आने पर अलग-अलग दिशाओं में फैल गये और प्रत्येक ने एक वैभव साम्राज्य खड़ा कर दिया, जो देश-विदेश में रामकृष्ण मिशन नाम से समग्र रूप से जाना जाता है ।
रामकृष्ण परमहंस के अवसान के तुरंत बाद शिष्यगणों में व्याप्त अवसाद को विवेकानंद ने अपनी विवेक द्रष्टि से देखा और उनका समाधान करते हुए कहा--- " भाइयों ! हमारे गुरु हमें कोई आश्रम, मठ, संपति, ट्रस्ट देकर नहीं गये, पर एक द्रष्टि दे गये हैं कि हमें कैसा जीवन जीना चाहिये । यदि हमें सामर्थ्यवान, वैभववान बनना है तो लोक-कल्याण के लिये, गुरु के संदेश को विश्वव्यापी बनाने के लिये गुरुदेव ने जो संयमरूपी शिक्षा हमें दी है, वही हमारे लिये बहुत है । संस्कृति के पुनर्जीवन हेतु अनिवार्य साधन हम उसी से एकत्र कर लेंगे । "
उनके संदेश में जैसे जादू था, अवसाद दूर हुआ । सभी संगठित हो जुट पड़े, समय आने पर अलग-अलग दिशाओं में फैल गये और प्रत्येक ने एक वैभव साम्राज्य खड़ा कर दिया, जो देश-विदेश में रामकृष्ण मिशन नाम से समग्र रूप से जाना जाता है ।
No comments:
Post a Comment