मन: स्थिति में अवांछनीयता ( दुर्बुद्धि ) भर जाने पर परिस्थिति भी विपन्न स्तर की बनती जाती है |
भ्रष्ट चिंतन और दुष्ट आचरण ही प्रकारांतर से दैत्य-दानव की भूमिका निभाते हैं |
यदि क्रम उलट दिया जाये, तो प्रतिकूलताओं को अनुकूलताओं में बदलने में देर नहीं लगेगी |
लोकचिंतन में उत्कृष्टता का समावेश और व्यवहार में भावनाओं, संवेदनाओं और सत्प्रवृतियों का संवर्द्धन करके सतयुग के सपने को साकार किया जा सकता है |
ज्यूरिन में युद्ध के बाद भयंकर अकाल पड़ा, बीमारियाँ फैल गईं | लोगों ने नैतिकता को उठाकर ताक पर रख दिया | स्वार्थ के लिये कोई भी दुष्कर्म और अपराध करने वालों का ज्यूरिन गढ़ था |
पेवरिन की अध्यक्षता में प्रबुद्ध वर्ग ने एक सेवा-समिति तैयार की | पेवरिन ने बड़े परिश्रम और लगन से समाज की सत्प्रवृतियों को ऊँचा उठाने का कार्य प्रारंभ किया | लोग बदलने लगे, लोगों के कष्ट भी दूर होने लगे | पेवरिन ने अनुभव किया कि अभी उनके पास योग्य और नि:स्वार्थ व्यक्तियों का अभाव है, इसलिये उन्होंने ऐसे व्यक्तियों के लिये एक विज्ञापन दिया |
27 वर्ष का एक युवक यूसो अपनी पत्नी के साथ पेवरिन के समक्ष उपस्थित हुआ और कहा--' मान्यवर, मैं आपकी संपूर्ण योजना में सेवार्थ प्रस्तुत हूँ | "
पेवरिन ने निराश निगाहों से देखा और कहा-- " मुझे तुम्हारा धन नहीं चाहिये, जो चाहिये वह दे सकोगे क्या ? "
युवक ने अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा--- " अपने देश, जाति, धर्म और संस्कृति के लिये यह सेवक आप जो कहें, देने को तैयार है | "
पेवरिन ने कहा-- " मुझे आप दोनों की जरुरत है, तीसरे की नहीं | " यूसो तात्पर्य समझ गये | विवाह हुए अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ था, बच्चा होने पर गृहस्थ में फँस जाओगे और सेवा न कर पाओगे | यूसो ने स्वाभिमान से कहा-- " मुझे स्वीकार है | "
एक व्यक्ति की निष्ठा ने ज्युरिनवासियों को शक्ति दी और ज्यूरिन जाग गया | उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर देश की सेवा की | लोग उस युवक दंपति को आज भी उतनी ही श्रद्धा से पूजते हैं जितनी किसी देवता को भी नहीं |
भ्रष्ट चिंतन और दुष्ट आचरण ही प्रकारांतर से दैत्य-दानव की भूमिका निभाते हैं |
यदि क्रम उलट दिया जाये, तो प्रतिकूलताओं को अनुकूलताओं में बदलने में देर नहीं लगेगी |
लोकचिंतन में उत्कृष्टता का समावेश और व्यवहार में भावनाओं, संवेदनाओं और सत्प्रवृतियों का संवर्द्धन करके सतयुग के सपने को साकार किया जा सकता है |
ज्यूरिन में युद्ध के बाद भयंकर अकाल पड़ा, बीमारियाँ फैल गईं | लोगों ने नैतिकता को उठाकर ताक पर रख दिया | स्वार्थ के लिये कोई भी दुष्कर्म और अपराध करने वालों का ज्यूरिन गढ़ था |
पेवरिन की अध्यक्षता में प्रबुद्ध वर्ग ने एक सेवा-समिति तैयार की | पेवरिन ने बड़े परिश्रम और लगन से समाज की सत्प्रवृतियों को ऊँचा उठाने का कार्य प्रारंभ किया | लोग बदलने लगे, लोगों के कष्ट भी दूर होने लगे | पेवरिन ने अनुभव किया कि अभी उनके पास योग्य और नि:स्वार्थ व्यक्तियों का अभाव है, इसलिये उन्होंने ऐसे व्यक्तियों के लिये एक विज्ञापन दिया |
27 वर्ष का एक युवक यूसो अपनी पत्नी के साथ पेवरिन के समक्ष उपस्थित हुआ और कहा--' मान्यवर, मैं आपकी संपूर्ण योजना में सेवार्थ प्रस्तुत हूँ | "
पेवरिन ने निराश निगाहों से देखा और कहा-- " मुझे तुम्हारा धन नहीं चाहिये, जो चाहिये वह दे सकोगे क्या ? "
युवक ने अपनी पत्नी की ओर देखा और कहा--- " अपने देश, जाति, धर्म और संस्कृति के लिये यह सेवक आप जो कहें, देने को तैयार है | "
पेवरिन ने कहा-- " मुझे आप दोनों की जरुरत है, तीसरे की नहीं | " यूसो तात्पर्य समझ गये | विवाह हुए अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ था, बच्चा होने पर गृहस्थ में फँस जाओगे और सेवा न कर पाओगे | यूसो ने स्वाभिमान से कहा-- " मुझे स्वीकार है | "
एक व्यक्ति की निष्ठा ने ज्युरिनवासियों को शक्ति दी और ज्यूरिन जाग गया | उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर देश की सेवा की | लोग उस युवक दंपति को आज भी उतनी ही श्रद्धा से पूजते हैं जितनी किसी देवता को भी नहीं |
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