जीवन बड़ा अमूल्य है । इसका एक क्षण भी करोड़ों स्वर्णमुद्राएँ देने पर भी नहीं मिल सकता । ऐसा जीवन निरर्थक नष्ट हो जाये, तो इससे बड़ी हानि क्या हो सकती है ? इस दुनिया में ऐसे बहुत से व्यक्तियों के उदाहरण हैं, जिनका जीवन बहुत सामान्य रहा, बहुत सारी असफलताएँ, दुःख, कष्ट उनके जीवन में रहे, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने जीवन में ऐसे कार्य कर दिखाये जो दुनिया की नजर में बहुत महत्वपूर्ण रहे और आज अपने इन्ही कार्यों की वजह से वे याद किये जाते हैं ।
अनुकरणीय-अभिनंदनीय वही जीवन है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा को पहचाना व इसको परिष्कृत करते हुए सीढ़ी-दर-सीढ़ी प्रगति के पथ पर अग्रसर होते गये । स्वयं के जीवन को प्रकाशित किया एवं दूसरों के लिये प्रकाशस्तंभ बनकर जीवन को धन्य किया ।
मरणासन्न माँ ने अपने पुत्र से कहा-- " बेटा ! मैं तुझे पढ़ा न सकी और अब मेरे पास समय
भी शेष नहीं है । तेरे लिये सारा संसार ही पाठशाला है, तुझे जहाँ से जो भी मिल सके, वहां से सीखना, वही तेरे काम आयेगा । " इतनी बात कहकर माँ ने सदा के लिये अपनी आँखे मूँद लीं ।
पुत्र ने माँ की सीख गांठ बाँध ली---- अपने दादाजी को पत्थर तोड़ते देख वह पत्थर तोड़ने का काम करने लगा । इस संबंध में उसका ज्ञान प्रखर हुआ तो वह गोताखोरी का काम करने लगा और समुद्री चट्टानों के विषय में जानकारी प्राप्त कर ली । इसके बाद उसने संगतराश के घर नौकरी कर ली और पत्थरों के गुणों का अध्ययन करने लगा । धीरे-धीरे लाल रंग के पत्थर के संबंध में उसका ज्ञान उच्चकोटि का हो गया । तब उसने अपने अनुभवों को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया । अपने अनुभव से प्राप्त ज्ञान को जब उसने पढ़े-लिखे लोगों के बीच बताना प्रारंभ किया, तो वे भी आश्चर्यचकित रह गये । उसकी ख्याति अब मात्र इंग्लैंड में ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में फैलने लगी । वह बालक और कोई नहीं ह्यू मिलट था जो अपनी माँ की सीख के कारण विश्वप्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री बना ।
जब व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से अपने मन को तल्लीन करके किसी कार्य को करता है, तो वह कुछ ऐसा खोज लेता है, जिसकी दुनिया कभी कल्पना भी नहीं कर सकती ।
अनुकरणीय-अभिनंदनीय वही जीवन है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा को पहचाना व इसको परिष्कृत करते हुए सीढ़ी-दर-सीढ़ी प्रगति के पथ पर अग्रसर होते गये । स्वयं के जीवन को प्रकाशित किया एवं दूसरों के लिये प्रकाशस्तंभ बनकर जीवन को धन्य किया ।
मरणासन्न माँ ने अपने पुत्र से कहा-- " बेटा ! मैं तुझे पढ़ा न सकी और अब मेरे पास समय
भी शेष नहीं है । तेरे लिये सारा संसार ही पाठशाला है, तुझे जहाँ से जो भी मिल सके, वहां से सीखना, वही तेरे काम आयेगा । " इतनी बात कहकर माँ ने सदा के लिये अपनी आँखे मूँद लीं ।
पुत्र ने माँ की सीख गांठ बाँध ली---- अपने दादाजी को पत्थर तोड़ते देख वह पत्थर तोड़ने का काम करने लगा । इस संबंध में उसका ज्ञान प्रखर हुआ तो वह गोताखोरी का काम करने लगा और समुद्री चट्टानों के विषय में जानकारी प्राप्त कर ली । इसके बाद उसने संगतराश के घर नौकरी कर ली और पत्थरों के गुणों का अध्ययन करने लगा । धीरे-धीरे लाल रंग के पत्थर के संबंध में उसका ज्ञान उच्चकोटि का हो गया । तब उसने अपने अनुभवों को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया । अपने अनुभव से प्राप्त ज्ञान को जब उसने पढ़े-लिखे लोगों के बीच बताना प्रारंभ किया, तो वे भी आश्चर्यचकित रह गये । उसकी ख्याति अब मात्र इंग्लैंड में ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में फैलने लगी । वह बालक और कोई नहीं ह्यू मिलट था जो अपनी माँ की सीख के कारण विश्वप्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री बना ।
जब व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से अपने मन को तल्लीन करके किसी कार्य को करता है, तो वह कुछ ऐसा खोज लेता है, जिसकी दुनिया कभी कल्पना भी नहीं कर सकती ।
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