दंभ एवं अहंकार से किसी का भला नहीं हुआ । ये तो पतन की राह दिखाते हैं । अहंकार ज्ञान के सारे द्वार बंद कर देता है । इनसे विकास नहीं, विनाश होता है ।
प्रभु के प्रति सच्चा नमस्कार, प्रभु की सबसे बड़ी पूजा है--- अहंकार का समर्पण । इस समर्पण प्रक्रिया से हमारा व्यक्तित्व प्रबल शक्तिसंपन्न होकर निखर उठता है । सारी सफलताओं का रहस्य यही है ।
अध्यात्म का मूल मर्म आत्मपरिष्कार में है, अहंकार के विसर्जन में है और जीवन को गलाने, गढ़ने एवं उसे विकसित करने में है । अध्यात्म कोई लाटरी नहीं है जिसमे केवल कुछ शब्दों के उच्चारण से हम जीवन में उत्थान और उत्कर्ष की कल्पना करें ।
अध्यात्म कहीं कुछ पाने की लालसा नहीं, बल्कि स्वयं को सही ढंग से जानने-पहचानने और विकसित करने का विज्ञान है ।
प्रभु के प्रति सच्चा नमस्कार, प्रभु की सबसे बड़ी पूजा है--- अहंकार का समर्पण । इस समर्पण प्रक्रिया से हमारा व्यक्तित्व प्रबल शक्तिसंपन्न होकर निखर उठता है । सारी सफलताओं का रहस्य यही है ।
अध्यात्म का मूल मर्म आत्मपरिष्कार में है, अहंकार के विसर्जन में है और जीवन को गलाने, गढ़ने एवं उसे विकसित करने में है । अध्यात्म कोई लाटरी नहीं है जिसमे केवल कुछ शब्दों के उच्चारण से हम जीवन में उत्थान और उत्कर्ष की कल्पना करें ।
अध्यात्म कहीं कुछ पाने की लालसा नहीं, बल्कि स्वयं को सही ढंग से जानने-पहचानने और विकसित करने का विज्ञान है ।
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