धर्म का तात्पर्य है---- कर्म तथा कर्तव्यपालन | जीवन को सार्थक बनाने और भटकावों, अनाचारों से बचने का एक ही तरीका है---- कर्तव्यपालन | हमें जिस संसार में काम करने के लिये, जीवनयापन का उतरदायित्व सँभालने के लिये भेजा गया है उसे अधिक सुंदर, समुन्नत एवं श्रेष्ठ बनाकर विदाई लेना ही बुद्धिमता है । इसी को कर्मयोग या कर्तव्यपालन कहते हैं । यह एक ऐसी विद्दा है, जिसे अपनाने पर हर समय संतोष और उत्साह रहता है । कर्मयोगी आजीवन स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं । मनुष्य की श्रेणी का निर्धारण उसकी कर्तव्यनिष्ठा से होता है । उत्तम व्यक्ति वे होते हैं जो विध्नों के पुन: आने पर भी प्रारम्भ किये हुए कार्य को अंत तक निभाते हैं
मनुष्य के जीवन में विपरीतता एवं विरोधाभास उसकी कर्तव्य निष्ठा एवं लगनशीलता की परीक्षा लेने के लिये आते हैं, उसको कर्तव्य पथ से च्युत करने के लिये नहीं ।
आत्मविश्वासी व्यक्ति को विपत्तियाँ कभी परास्त नहीं कर सकतीं ।
अपने दायित्वों को भली भांति न निभा पाना भी एक अपराध है ।
मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर रंगून में निर्वासित जीवन बिता रहे थे । वे एक दिन सम्राट थे, किंतु आज उनका जीवन अभाव और कष्टों की कहानी बन गया था । किसी ने पूछा--- " आप इतने कष्टों को मौन होकर सहते जा रहें हैं, विरोध क्यों नहीं करते ? "
सम्राट ने बड़ी गंभीरता से उत्तर दिया---- " विरोध करने की क्या आवश्यकता ? अपराध मुझसे हुआ है तो दंड भी मुझे ही भुगतना होगा । यदि इससे भी अधिक यातनाएं दी जायेंगी तो उन्हें भी मैं खुशी-खुशी सहन करूँगा । "
उसने पूछा--- " क्या अपराध किया है आपने ? मुझे भी बताइए ? "
सम्राट ने कहा--- देश का प्रहरी होकर मुझे प्रत्येक समय सजग रहना चाहिये, पर मैं बेहोशी की नींद सोया रहा । शत्रु ने आक्रमण कर दिया, परंतु मैं समय पर उसे ललकार भी न सका । इससे बड़ा देशद्रोह और अपराध क्या हो सकता है ? "
मनुष्य के जीवन में विपरीतता एवं विरोधाभास उसकी कर्तव्य निष्ठा एवं लगनशीलता की परीक्षा लेने के लिये आते हैं, उसको कर्तव्य पथ से च्युत करने के लिये नहीं ।
आत्मविश्वासी व्यक्ति को विपत्तियाँ कभी परास्त नहीं कर सकतीं ।
अपने दायित्वों को भली भांति न निभा पाना भी एक अपराध है ।
मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर रंगून में निर्वासित जीवन बिता रहे थे । वे एक दिन सम्राट थे, किंतु आज उनका जीवन अभाव और कष्टों की कहानी बन गया था । किसी ने पूछा--- " आप इतने कष्टों को मौन होकर सहते जा रहें हैं, विरोध क्यों नहीं करते ? "
सम्राट ने बड़ी गंभीरता से उत्तर दिया---- " विरोध करने की क्या आवश्यकता ? अपराध मुझसे हुआ है तो दंड भी मुझे ही भुगतना होगा । यदि इससे भी अधिक यातनाएं दी जायेंगी तो उन्हें भी मैं खुशी-खुशी सहन करूँगा । "
उसने पूछा--- " क्या अपराध किया है आपने ? मुझे भी बताइए ? "
सम्राट ने कहा--- देश का प्रहरी होकर मुझे प्रत्येक समय सजग रहना चाहिये, पर मैं बेहोशी की नींद सोया रहा । शत्रु ने आक्रमण कर दिया, परंतु मैं समय पर उसे ललकार भी न सका । इससे बड़ा देशद्रोह और अपराध क्या हो सकता है ? "
very nice thought.
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