कर्मयोगी वह है, जो वर्तमान पर द्रष्टि रखता है | अपनी सारी समझ, बुद्धि, मेहनत और मनोयोग अपने कर्तव्य को, कर्म को अच्छा बनाने के लिये लगाता है । ' वर्क इज वर्शिप ' अर्थात काम को भगवान की पूजा इसलिये बताया गया है कि व्यक्ति अपने काम को ईमानदारी और जिम्मेदारी से करे । काम करने का अर्थ केवल श्रम करने से नहीं है । कार्य के साथ में--- ईमानदारी, जिम्मेदारी, सुरुचि-खूबसूरती, तन्मयता, तत्परता, जोश और अपनत्व हो तथा
कार्य को ऐसे ढंग से किया जाये कि सामान्य होकर भी असामान्य हो जाये । ऐसे असामान्य कार्य को कर्मयोग कहा जाता है ।
अंधकार के विदा होने का समय निकट आ गया । भगवान भास्कर भी अपने रथ पर सवार होकर गगन-पथ पर आगे बढ़ने लगे । दीपक की लौ ने अपना मस्तक उठाकर सूर्य को प्रणाम किया और बुझ गया ।
सूर्य को यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि मेरी अनुपस्थिति में दीपक ने अपने कर्तव्य को अच्छी तरह निभाया है । वह दीपक को वरदान देने के लिये तैयार हो गये । दीपक की आत्मा सहज भाव से बोल पड़ी--- " सूर्य देव ! संसार में अपने कर्तव्यपालन से बढ़कर कोई अन्य पुरस्कार हो सकता है, मैं नहीं जानता । मैंने तो आपके द्वारा दिये गये उत्तरदायित्वों का निर्वाह किया है । "
सहज भाव से निभाया कर्तव्य महानता का ही प्रतीक है ।
कार्य को ऐसे ढंग से किया जाये कि सामान्य होकर भी असामान्य हो जाये । ऐसे असामान्य कार्य को कर्मयोग कहा जाता है ।
अंधकार के विदा होने का समय निकट आ गया । भगवान भास्कर भी अपने रथ पर सवार होकर गगन-पथ पर आगे बढ़ने लगे । दीपक की लौ ने अपना मस्तक उठाकर सूर्य को प्रणाम किया और बुझ गया ।
सूर्य को यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि मेरी अनुपस्थिति में दीपक ने अपने कर्तव्य को अच्छी तरह निभाया है । वह दीपक को वरदान देने के लिये तैयार हो गये । दीपक की आत्मा सहज भाव से बोल पड़ी--- " सूर्य देव ! संसार में अपने कर्तव्यपालन से बढ़कर कोई अन्य पुरस्कार हो सकता है, मैं नहीं जानता । मैंने तो आपके द्वारा दिये गये उत्तरदायित्वों का निर्वाह किया है । "
सहज भाव से निभाया कर्तव्य महानता का ही प्रतीक है ।
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