आज के भोगवादी युग में हर व्यक्ति मन की शांति चाहता है । सुख-साधनों का उपभोग करते हुए, अपने अहं को पालकर उससे नियंत्रित होते हुए यह शांति कभी मिलेगी नहीं । लोग उसे तलाशते भी इन्ही चीजों के माध्यम से हैं ।
फलत: अतृप्ति-बेचैनी-तनाव-उन्माद ही हाथ लगते हैं । प्रभु-समर्पित जीवन जिए बिना मन शांत नहीं हो सकता ।
छान्दोग्योपनिषद् में बड़ी प्रेरक कथा है---------- सनत्कुमार देवर्षि नारद के गुरु थे । उन्ही के माध्यम से उन्होंने सारी विद्दाएँ सीखीं, पर उनके मन की आकुलता, व्यग्रता यथावत बनी रही । इतना ज्ञान फिर भी ह्रदय में व्याकुलता । नारद बड़े व्यथित थे । सनत्कुमार ने अपनी दिव्य द्रष्टि से देखा और नारद से कहा---- " सारी सिद्धि मिली, पर तुम्हे शांति मिली नहीं । फिर क्या फायदा ! कोरा ज्ञान किस काम का ! " उनने कहा---- " ईश्वरत्व में स्वयं को घोलकर भक्तिरस का संपुट देकर यह ज्ञान सारी दुनिया को सुनाओ । झूठे घमंड के कारण मात्र ज्ञान के आधार पर यह मत सोचो कि तुम सब पा चुके हो । सिद्धियाँ तब तक बेकार हैं, जब तक मन में शांति नहीं है । अशांत व्यक्ति को सुख कहाँ ? "
सनत्कुमार ने कहा------ " मन की शांति तुम्हे भक्ति से मिलेगी , भक्ति का आनंद बिखेरने से मिलेगी । ज्ञान का अनुपान संवेदना है, भक्ति है , समर्पण है । तुम भूल जाओ कि तुम ज्ञानी हो । अपने ज्ञान को भक्ति के साथ वितरित करना आरंभ कर दो । "
सनत्कुमार ने कहा---- " भगवान ने वेद में कहा है कि तीन पद दिव्य हैं------ ज्ञान, भक्ति और कर्म । ज्ञान के रूप में अभी एक ही अंश बना है । कर्म के साथ परिव्रज्या करते हुए भक्ति को और समाविष्ट कर लोगे तो भक्त शिरोमणि कहलाओगे । "
नारद ने गुरु का परामर्श स्वीकार किया और भक्त शिरोमणि कहलाये । अगणित व्यक्तियों को उनने परामर्श देकर उनके जीवन की राह बदल दी । ध्रुव, प्रह्लाद, वाल्मीकि इसके उदहारण हैं ।
फलत: अतृप्ति-बेचैनी-तनाव-उन्माद ही हाथ लगते हैं । प्रभु-समर्पित जीवन जिए बिना मन शांत नहीं हो सकता ।
छान्दोग्योपनिषद् में बड़ी प्रेरक कथा है---------- सनत्कुमार देवर्षि नारद के गुरु थे । उन्ही के माध्यम से उन्होंने सारी विद्दाएँ सीखीं, पर उनके मन की आकुलता, व्यग्रता यथावत बनी रही । इतना ज्ञान फिर भी ह्रदय में व्याकुलता । नारद बड़े व्यथित थे । सनत्कुमार ने अपनी दिव्य द्रष्टि से देखा और नारद से कहा---- " सारी सिद्धि मिली, पर तुम्हे शांति मिली नहीं । फिर क्या फायदा ! कोरा ज्ञान किस काम का ! " उनने कहा---- " ईश्वरत्व में स्वयं को घोलकर भक्तिरस का संपुट देकर यह ज्ञान सारी दुनिया को सुनाओ । झूठे घमंड के कारण मात्र ज्ञान के आधार पर यह मत सोचो कि तुम सब पा चुके हो । सिद्धियाँ तब तक बेकार हैं, जब तक मन में शांति नहीं है । अशांत व्यक्ति को सुख कहाँ ? "
सनत्कुमार ने कहा------ " मन की शांति तुम्हे भक्ति से मिलेगी , भक्ति का आनंद बिखेरने से मिलेगी । ज्ञान का अनुपान संवेदना है, भक्ति है , समर्पण है । तुम भूल जाओ कि तुम ज्ञानी हो । अपने ज्ञान को भक्ति के साथ वितरित करना आरंभ कर दो । "
सनत्कुमार ने कहा---- " भगवान ने वेद में कहा है कि तीन पद दिव्य हैं------ ज्ञान, भक्ति और कर्म । ज्ञान के रूप में अभी एक ही अंश बना है । कर्म के साथ परिव्रज्या करते हुए भक्ति को और समाविष्ट कर लोगे तो भक्त शिरोमणि कहलाओगे । "
नारद ने गुरु का परामर्श स्वीकार किया और भक्त शिरोमणि कहलाये । अगणित व्यक्तियों को उनने परामर्श देकर उनके जीवन की राह बदल दी । ध्रुव, प्रह्लाद, वाल्मीकि इसके उदहारण हैं ।
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