भावना मनुष्य को प्राप्त ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है । भावना के होने पर ही इनसान औरों की पीड़ा और दुःख-दरद को समझ पाता है ।
ठाकुरदास नामक एक वयोवृद्ध कोलकाता में रहते थे, उनके परिवार में उनकी पत्नी व एक बच्चा था इस सीमित परिवार का भरण-पोषण भी आसानी से नहीं हो पाता था । कालांतर में उनका देहांत हो गया और पत्नी के कंधों पर परिवार का दायित्व आ गया । एक दिन बेटे ने अपनी माँ से कहा--- " माँ ! मेरी इच्छा है कि मैं पढ़-लिखकर बहुत बड़ा विद्वान् बनूँ और तुम्हारी खूब सेवा करूँ
" कैसी सेवा करेगा ?" माँ ने पूछा
" माँ, तुमने बड़ी तकलीफ में दिन गुजारे हैं । मैं तुम्हे अच्छा खाना खिलाऊंगा' तुम्हारे लिए गहने भी बनवाऊंगा । " माँ बोली--- " हाँ बेटा ! लेकिन गहने मेरी पसंद के ही बनवाना । "
माँ ने कहा---- " मुझे तीन गहनों कि बड़ी चाह है । पहला गहना है----- इस गाँव में कोई अच्छा स्कूल नहीं है, तुम एक स्कूल बनवाना । दूसरा गहना है--- दवाखाना खुलवाना और तीसरा गहना है----गरीब बच्चों के रहने, खाने तथा शिक्षा प्राप्त करने की व्यवस्था करना ।
बेटे ने माँ के इन तीन गहनों का सदैव ध्यान रखा । वह बराबर स्कूल, औषधालय तथा सहायता केंद्र खोलता गया ।
आगे चलकर विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत कार्य किया ।
यह महामानव थे---- पं. ईश्वरचंद्र विद्दासागर
ठाकुरदास नामक एक वयोवृद्ध कोलकाता में रहते थे, उनके परिवार में उनकी पत्नी व एक बच्चा था इस सीमित परिवार का भरण-पोषण भी आसानी से नहीं हो पाता था । कालांतर में उनका देहांत हो गया और पत्नी के कंधों पर परिवार का दायित्व आ गया । एक दिन बेटे ने अपनी माँ से कहा--- " माँ ! मेरी इच्छा है कि मैं पढ़-लिखकर बहुत बड़ा विद्वान् बनूँ और तुम्हारी खूब सेवा करूँ
" कैसी सेवा करेगा ?" माँ ने पूछा
" माँ, तुमने बड़ी तकलीफ में दिन गुजारे हैं । मैं तुम्हे अच्छा खाना खिलाऊंगा' तुम्हारे लिए गहने भी बनवाऊंगा । " माँ बोली--- " हाँ बेटा ! लेकिन गहने मेरी पसंद के ही बनवाना । "
माँ ने कहा---- " मुझे तीन गहनों कि बड़ी चाह है । पहला गहना है----- इस गाँव में कोई अच्छा स्कूल नहीं है, तुम एक स्कूल बनवाना । दूसरा गहना है--- दवाखाना खुलवाना और तीसरा गहना है----गरीब बच्चों के रहने, खाने तथा शिक्षा प्राप्त करने की व्यवस्था करना ।
बेटे ने माँ के इन तीन गहनों का सदैव ध्यान रखा । वह बराबर स्कूल, औषधालय तथा सहायता केंद्र खोलता गया ।
आगे चलकर विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत कार्य किया ।
यह महामानव थे---- पं. ईश्वरचंद्र विद्दासागर
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