विभूति अर्थात विशेष गुण-क्षमता से संपन्न व्यक्तित्व । विश्व के परिवर्तन एवं निर्माण के इतिहास में भी विभूतियों का ही योगदान है
विभूतियाँ दुधारी तलवार की तरह होती हैं । जहाँ ये सृजन में अपना चमत्कार प्रस्तुत करती हैं, वहीँ दिशा भटकने पर भयंकर विनाश और विध्वंस के द्रश्य भी प्रस्तुत करती हैं ।
विभूतियाँ यथार्थ में ईश्वरीय अनुदान ही हैं जो ईश्वर ने अपने प्रिय विश्व उद्दान को सुरम्य और सुविकसित करने के लिये दी हैं ।
इन विभूतियों का नियोजन शिक्षा, कला, साहित्य, धर्म, विज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में सृजन की दिशा में हो तभी उनकी सार्थकता है ।
देवराज इंद्र को असुरों से अनेक बार परास्त होना पड़ा । भगवान की विशेष सहायता से ही वे बड़ी कठिनाई के साथ अपना इंद्रासन लौटाने में सफल हो सके । इस बार-बार पराजय का कारण एक दिन प्रजापति से पूछा, तो उन्होंने कहा कि ऐश्वर्य की रक्षा संयम से होती है । जो वैभव पाकर प्रमाद में फँस जाते हैं, उन्हें पराभव का मुँह देखना पड़ता है । यह मानव शरीर अपरिमित ऐश्वर्यशाली है, जो इसका संयमपूर्वक सदुपयोग कर लेते हैं, वे ही पराभव का मुँह देखने से बच पाते हैं ।
हर विभूतिवान को अपनी विभूति का सदुपयोग करने के लिये सजग रहना चाहिये ।
विभूतियाँ दुधारी तलवार की तरह होती हैं । जहाँ ये सृजन में अपना चमत्कार प्रस्तुत करती हैं, वहीँ दिशा भटकने पर भयंकर विनाश और विध्वंस के द्रश्य भी प्रस्तुत करती हैं ।
विभूतियाँ यथार्थ में ईश्वरीय अनुदान ही हैं जो ईश्वर ने अपने प्रिय विश्व उद्दान को सुरम्य और सुविकसित करने के लिये दी हैं ।
इन विभूतियों का नियोजन शिक्षा, कला, साहित्य, धर्म, विज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में सृजन की दिशा में हो तभी उनकी सार्थकता है ।
देवराज इंद्र को असुरों से अनेक बार परास्त होना पड़ा । भगवान की विशेष सहायता से ही वे बड़ी कठिनाई के साथ अपना इंद्रासन लौटाने में सफल हो सके । इस बार-बार पराजय का कारण एक दिन प्रजापति से पूछा, तो उन्होंने कहा कि ऐश्वर्य की रक्षा संयम से होती है । जो वैभव पाकर प्रमाद में फँस जाते हैं, उन्हें पराभव का मुँह देखना पड़ता है । यह मानव शरीर अपरिमित ऐश्वर्यशाली है, जो इसका संयमपूर्वक सदुपयोग कर लेते हैं, वे ही पराभव का मुँह देखने से बच पाते हैं ।
हर विभूतिवान को अपनी विभूति का सदुपयोग करने के लिये सजग रहना चाहिये ।
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