श्रीमदभगवद्गीता में भगवान कहते हैं, " अर्जुन ! मुझे तीनो लोकों में सभी कुछ उपलब्ध है, तब भी मैं अथक रूप से निरंतर कार्य करता रहता हूँ, मैं कर्म में विश्वास करता हूँ । "
अवतार स्वयं इनसान के स्तर पर उतरकर कार्य करके दिखाते हैं, एक प्रकार से लोकशिक्षण देते हैं, पूर्ण जिंदगी जीकर दिखाते हैं कि जीवन को कलाकार की तरह कैसे जिया जाये ।
इस तनाव भरे युग में जब हम से ढेरों अपेक्षा की जाती हैं, हमारा परेशान होना स्वाभाविक है ।
ऐसे में भूत, वर्तमान, भविष्य तीनो को साधकर शांत-गंभीर बने रह समर्पण भाव से कर्म करना ही हमारा धर्म होना चाहिये ।
हमें चाहिये कि हम अपने अंदर एक आदर्श अथवा इष्ट के प्रति श्रद्धा पैदा करें तथा समर्पण भाव से उद्दमपूर्वक कर्मरत रहें । यही सफलता का राजमार्ग है ।
भगवान अर्जुन को स्पष्ट समझा रहें हैं कि इस जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करना है तो एक ही राजमार्ग है---- किसी महान आदर्श के प्रति अपना परिपूर्ण समर्पण एवं अपना ह्रदय उसी के विचारों से भरकर श्रेष्ठता के साथ कर्मों का संपादन ।
गीता में भगवान का स्थापित निर्णय है कि जो अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत करते हैं, उत्कृष्ट चिंतन तथा लोकमंगल के कार्यों के लिये अपना जीवन समर्पित करते हैं, वे हर द्रष्टि से सफल रहते हैं और सभी प्रकार के कर्मबंधनों से छूट जाते हैं
यह सत्य हम सभी की समझ में आ जाये तो जीने का आनंद आ जाये । ।
जिंदगी का बचा समय बहुत कम है । भटकाव बहुत हैं । हम इनमें उलझने के बजाय स्वयं को श्रेष्ठतम कर्म में लगा लें तो हमारा इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जायेगा ।
अवतार स्वयं इनसान के स्तर पर उतरकर कार्य करके दिखाते हैं, एक प्रकार से लोकशिक्षण देते हैं, पूर्ण जिंदगी जीकर दिखाते हैं कि जीवन को कलाकार की तरह कैसे जिया जाये ।
इस तनाव भरे युग में जब हम से ढेरों अपेक्षा की जाती हैं, हमारा परेशान होना स्वाभाविक है ।
ऐसे में भूत, वर्तमान, भविष्य तीनो को साधकर शांत-गंभीर बने रह समर्पण भाव से कर्म करना ही हमारा धर्म होना चाहिये ।
हमें चाहिये कि हम अपने अंदर एक आदर्श अथवा इष्ट के प्रति श्रद्धा पैदा करें तथा समर्पण भाव से उद्दमपूर्वक कर्मरत रहें । यही सफलता का राजमार्ग है ।
भगवान अर्जुन को स्पष्ट समझा रहें हैं कि इस जीवन संग्राम में सफलता प्राप्त करना है तो एक ही राजमार्ग है---- किसी महान आदर्श के प्रति अपना परिपूर्ण समर्पण एवं अपना ह्रदय उसी के विचारों से भरकर श्रेष्ठता के साथ कर्मों का संपादन ।
गीता में भगवान का स्थापित निर्णय है कि जो अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत करते हैं, उत्कृष्ट चिंतन तथा लोकमंगल के कार्यों के लिये अपना जीवन समर्पित करते हैं, वे हर द्रष्टि से सफल रहते हैं और सभी प्रकार के कर्मबंधनों से छूट जाते हैं
यह सत्य हम सभी की समझ में आ जाये तो जीने का आनंद आ जाये । ।
जिंदगी का बचा समय बहुत कम है । भटकाव बहुत हैं । हम इनमें उलझने के बजाय स्वयं को श्रेष्ठतम कर्म में लगा लें तो हमारा इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जायेगा ।
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