' जीवनशैली एवं विचारों में परिवर्तन किए बगैर पिछड़े, दलित या किसी ऐसे समाज का उत्थान संभव नहीं । '
किसी भी पिछड़े समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए, केवल सरकारी सहायता ही पर्याप्त नहीं है, उस समाज के लोगों की जीवनशैली में परिवर्तन करना अनिवार्य है ।
यह अत्यंत धैर्यपूर्वक और दीर्घकाल तक की जाने वाली प्रक्रिया है ।
इनसान या किसी समाज की वर्तमान दुरवस्था का कारण उनके अतीत के कर्मों में सन्निहित होता है । जिन कर्मों के कारण व्यक्ति और समाज ऐसी हेय एवं दयनीय स्थिति में जीने के लिये विवश हैं । शुभ एवं सत्कर्मों के माध्यम से आशातीत परिवर्तन लाया जा सकता है ।
समाज की महिलाओं एवं पुरुषों को केवल पैसा या सहायता देना पर्याप्त नहीं है । उनके अंदर की क्षमता एवं रचनात्मकता के आधार पर इस राशि से स्वावलंबन कार्य आरंभ करना चाहिए और उन्हें शुभ कर्मों से जोड़ना चाहिए, सेवा कार्यों में संलगन करना चाहिए । इससे उनकी जीवनशैली में परिवर्तन आएगा, उनके जड़ जमाये नकारात्मक विचार बदलेंगे । शिक्षा एवं विभिन्न प्रकार की सेवा एवं स्वावलंबन कार्य करने से उनके अंदर आत्मविश्वास जागेगा एवं वे स्वयं इन कार्यों में प्रवृत होंगे ।
शुभ विचारों के परिणामस्वरुप मन धीरे-धीरे उन्नत होने लगता है । परम पवित्र निष्काम कर्म करने से संतुष्टि एवं तृप्ति मिलती है ।
किसी भी पिछड़े समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए, केवल सरकारी सहायता ही पर्याप्त नहीं है, उस समाज के लोगों की जीवनशैली में परिवर्तन करना अनिवार्य है ।
यह अत्यंत धैर्यपूर्वक और दीर्घकाल तक की जाने वाली प्रक्रिया है ।
इनसान या किसी समाज की वर्तमान दुरवस्था का कारण उनके अतीत के कर्मों में सन्निहित होता है । जिन कर्मों के कारण व्यक्ति और समाज ऐसी हेय एवं दयनीय स्थिति में जीने के लिये विवश हैं । शुभ एवं सत्कर्मों के माध्यम से आशातीत परिवर्तन लाया जा सकता है ।
समाज की महिलाओं एवं पुरुषों को केवल पैसा या सहायता देना पर्याप्त नहीं है । उनके अंदर की क्षमता एवं रचनात्मकता के आधार पर इस राशि से स्वावलंबन कार्य आरंभ करना चाहिए और उन्हें शुभ कर्मों से जोड़ना चाहिए, सेवा कार्यों में संलगन करना चाहिए । इससे उनकी जीवनशैली में परिवर्तन आएगा, उनके जड़ जमाये नकारात्मक विचार बदलेंगे । शिक्षा एवं विभिन्न प्रकार की सेवा एवं स्वावलंबन कार्य करने से उनके अंदर आत्मविश्वास जागेगा एवं वे स्वयं इन कार्यों में प्रवृत होंगे ।
शुभ विचारों के परिणामस्वरुप मन धीरे-धीरे उन्नत होने लगता है । परम पवित्र निष्काम कर्म करने से संतुष्टि एवं तृप्ति मिलती है ।
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