' नदी की धारा में जल तो एक सीमा तक ही होता है किंतु हिमालय जैसे विशाल जलस्रोत से तारतम्य जुड़ा होने के कारण सरिता अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित ही बनी रहती है ।
इसी प्रकार यदि हम अपनी आत्मशक्ति के संवर्धन हेतु सीधे दैवी प्रवाह से, परमात्मसत्ता से जुड़ जायें तो आवश्यकतानुसार उस मूल स्रोत से चाहे जब, बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है ।
यदि हमारा मूलभूत लक्ष्य अंतरंग की सामर्थ्य को उभारने का हो तो बहिरंग जगत की उपलब्धियाँ भी सार्थक होने लगती हैं । आत्मिक शक्ति का उपार्जन न होने पर बहिरंग का वैभव तनावजन्य-असंतोष, परेशानी, पारस्परिक विद्वेष के साथ समाज में विषमता की स्थिति लाता है ।
आज भौतिक और वैज्ञानिक प्रगति में इनसान बहुत आगे बढ़ गया है परंतु अंत:करण में आत्मिक महानता, उदारता, संवेदना आदि सद्गुण न होने के कारण यह एकांगी विकास अपने साथ आस्था-संकट की विभीषिका लेकर आया है ।
' आत्मिक और भौतिक दोनों ही क्षेत्रों में जब संतुलित उन्नति होती है, तभी उसे वास्तविक विकास माना जाता है । '
यदि आज की समस्याओं का समाधान करना है, व्यक्तित्व का परिष्कार कर आत्मगौरव बढ़ाना है तो यह अंतर्जगत के पुरुषार्थ द्वारा ही संभव है ।
गायत्री युगशक्ति है । गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में मानव जाति का पथप्रदर्शन करने वाली शिक्षाएँ भरी हुई हैं । श्रद्धा और विश्वास के साथ उपासना करने से सद्गुणों की वृद्धि होती है, दूरदर्शिता का विकास होता है, जिसके आधार पर जीवन-समस्या की अनेक गुत्थियों को सरल किया जा सकता है
इसी प्रकार यदि हम अपनी आत्मशक्ति के संवर्धन हेतु सीधे दैवी प्रवाह से, परमात्मसत्ता से जुड़ जायें तो आवश्यकतानुसार उस मूल स्रोत से चाहे जब, बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है ।
यदि हमारा मूलभूत लक्ष्य अंतरंग की सामर्थ्य को उभारने का हो तो बहिरंग जगत की उपलब्धियाँ भी सार्थक होने लगती हैं । आत्मिक शक्ति का उपार्जन न होने पर बहिरंग का वैभव तनावजन्य-असंतोष, परेशानी, पारस्परिक विद्वेष के साथ समाज में विषमता की स्थिति लाता है ।
आज भौतिक और वैज्ञानिक प्रगति में इनसान बहुत आगे बढ़ गया है परंतु अंत:करण में आत्मिक महानता, उदारता, संवेदना आदि सद्गुण न होने के कारण यह एकांगी विकास अपने साथ आस्था-संकट की विभीषिका लेकर आया है ।
' आत्मिक और भौतिक दोनों ही क्षेत्रों में जब संतुलित उन्नति होती है, तभी उसे वास्तविक विकास माना जाता है । '
यदि आज की समस्याओं का समाधान करना है, व्यक्तित्व का परिष्कार कर आत्मगौरव बढ़ाना है तो यह अंतर्जगत के पुरुषार्थ द्वारा ही संभव है ।
गायत्री युगशक्ति है । गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में मानव जाति का पथप्रदर्शन करने वाली शिक्षाएँ भरी हुई हैं । श्रद्धा और विश्वास के साथ उपासना करने से सद्गुणों की वृद्धि होती है, दूरदर्शिता का विकास होता है, जिसके आधार पर जीवन-समस्या की अनेक गुत्थियों को सरल किया जा सकता है
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