लक्ष्य निर्धारित कर तदनुसार चलना ' विजनरी ' बनना कहा जाता है । आज हम में द्रष्टिबोध नहीं है ।
हमें अपना लक्ष्य तय करना नहीं आता । साधनों का संचय करें या अपने जीवन मूल्यों के प्रति सजगता बढ़ाएं । परिवार को धन कमाने की फैक्टरी बनाएँ या आदर्श गुणों की खान ।
जब लक्ष्य ही स्पष्ट नहीं है कि जाना कहां है ? कैसे जाना है ? तो जीवन यात्रा सुगम कैसे हो !
अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं है । यह राह कितनी भी साधन-सुविधाओं से भरी-पूरी क्यों न हो, परंतु इसका अंत अत्यंत भयावह होता है ।
सामान्य रूप से गलत एवं अनीतिपूर्ण राह में आकर्षण प्रबल होता है क्योंकि इस राह पर चलने वालों की संख्या सर्वाधिक होती है आजकल समाज में संपन्न एवं संपदावान व्यक्ति ही बड़ा एवं श्रेष्ठ कहलाता है, भले ही संपन्नता अनीतिपूर्वक उपलब्ध की गई हो । जब धन-संपदा को ही प्रतिष्ठा का दरजा मिल गया तो व्यक्ति अनीति एवं अनाचार को अपनाकर भी दौलत हासिल करना चाहता है और अनीति की राह पर चलकर भी रातोंरात शोहरत को पाना चाहता है । ।
अनीति और गलत राह पर चलकर पाई गई यह चकाचौंध दूसरों पर अपना प्रभाव कितना ही क्यों न डाले, परंतु अंतर्मन खोखला ही रहता है, कभी भी तृप्ति का एहसास नहीं कर पाता ।
जबकि सन्मार्ग सदा श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर पहुंचाता है, भले ही इसके लिए कितनी भी कसौटियों एवं परीक्षाओं का सामना क्यों न करना पड़े । सच्चा सूरमा वही है , जो सच्चाई की राह पर अडिग रहे और समस्याओं के झंझावातों का साहस, धैर्य एवं विवेकपूर्वक सामना करता रहे ।
सच्चाई के पथ पर चलकर प्राप्त उपलब्धि का आनंद और अनुभव तो केवल वही जान सकता है, जिसने दीपक के समान जलकर इसे हस्तगत किया हो ।
हमें अपना लक्ष्य तय करना नहीं आता । साधनों का संचय करें या अपने जीवन मूल्यों के प्रति सजगता बढ़ाएं । परिवार को धन कमाने की फैक्टरी बनाएँ या आदर्श गुणों की खान ।
जब लक्ष्य ही स्पष्ट नहीं है कि जाना कहां है ? कैसे जाना है ? तो जीवन यात्रा सुगम कैसे हो !
अनीति एवं गलत राह से कभी भी श्रेष्ठ मंजिल की प्राप्ति संभव नहीं है । यह राह कितनी भी साधन-सुविधाओं से भरी-पूरी क्यों न हो, परंतु इसका अंत अत्यंत भयावह होता है ।
सामान्य रूप से गलत एवं अनीतिपूर्ण राह में आकर्षण प्रबल होता है क्योंकि इस राह पर चलने वालों की संख्या सर्वाधिक होती है आजकल समाज में संपन्न एवं संपदावान व्यक्ति ही बड़ा एवं श्रेष्ठ कहलाता है, भले ही संपन्नता अनीतिपूर्वक उपलब्ध की गई हो । जब धन-संपदा को ही प्रतिष्ठा का दरजा मिल गया तो व्यक्ति अनीति एवं अनाचार को अपनाकर भी दौलत हासिल करना चाहता है और अनीति की राह पर चलकर भी रातोंरात शोहरत को पाना चाहता है । ।
अनीति और गलत राह पर चलकर पाई गई यह चकाचौंध दूसरों पर अपना प्रभाव कितना ही क्यों न डाले, परंतु अंतर्मन खोखला ही रहता है, कभी भी तृप्ति का एहसास नहीं कर पाता ।
जबकि सन्मार्ग सदा श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर पहुंचाता है, भले ही इसके लिए कितनी भी कसौटियों एवं परीक्षाओं का सामना क्यों न करना पड़े । सच्चा सूरमा वही है , जो सच्चाई की राह पर अडिग रहे और समस्याओं के झंझावातों का साहस, धैर्य एवं विवेकपूर्वक सामना करता रहे ।
सच्चाई के पथ पर चलकर प्राप्त उपलब्धि का आनंद और अनुभव तो केवल वही जान सकता है, जिसने दीपक के समान जलकर इसे हस्तगत किया हो ।
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