' सच्ची साधना क्रिया में नहीं विचारों एवं भावनाओं में निहित है । धर्म के सभी कर्मकांड तभी सार्थक हैं जब कर्मकांड, क़रने वाला प्रत्येक व्यक्ति करुणा, संवेदना, न्यायशीलता, संयम, सदाचार, के मार्ग का अनुसरण करे । '
धर्म तो संवेदना , सेवा, सहिष्णुता का पर्याय है । इनसान का धर्म इनसानियत है, कर्तव्यपालन है । गीता में भगवान ने कहा है ---- अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मरना भी कल्याणकारक है सारे संसार का एक ही धर्म विश्व धर्म हो---- इनसानियत, मानवीयता ,
एक ऐसा मिलन बिंदु हो जिसमे सभी धर्मों की श्रेष्ठताएँ समाविष्ट हों तब धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई-झगड़े स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे ।
धर्म तो संवेदना , सेवा, सहिष्णुता का पर्याय है । इनसान का धर्म इनसानियत है, कर्तव्यपालन है । गीता में भगवान ने कहा है ---- अपने कर्तव्य का पालन करते हुए मरना भी कल्याणकारक है सारे संसार का एक ही धर्म विश्व धर्म हो---- इनसानियत, मानवीयता ,
एक ऐसा मिलन बिंदु हो जिसमे सभी धर्मों की श्रेष्ठताएँ समाविष्ट हों तब धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई-झगड़े स्वत: ही समाप्त हो जायेंगे ।
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