हमारा जीवन प्रेरणादायी बने , अपनी सार्थकता के साथ फलीभूत हो , इसके लिए अपने अंदर की श्रेष्ठतम क्षमता एवं प्रतिभा को उभारना होगा ।
राजा महेंद्र प्रताप के पास ज्योतिषी पहुंचे और कहा --- " आपके भाग्य में पुत्र नहीं है , पर आप अमुक अनुष्ठान करेंगे , तो अवश्य पुत्र होगा । " राजा साहब ने उन्हें तुरंत विदा करते हुए कहा--- " आपको व्यर्थ मेरे जैसे व्यक्ति के पास आकर समय नष्ट करना पड़ा व तुरंत जाना भी पड़ रहा है । आप अपनी सलाह अपने पास रखें, मुझे अपना वंश चलाने के लिए जीवधारी रूपी बेटा नहीं चाहिए ।
जो राशि बेटे पर खर्च होती, उसे मैं सत्प्रयोजन में नियोजित करूँगा । "
राजा साहब ने वृन्दावन में प्रेम महाविद्दालय की स्थापना की । उसे ही अपना बेटा माना व लाखों की सम्पति उसे दे गये । विरासत में उन्होंने लिखा कि मेरा वंश यह प्रेम महाविद्दालय ही आगे चलाएगा । समाज में ऐसी सत्प्रवृतियाँ चल पड़ें तो मैं समझूँगा कि मेरा पुत्र सपूत निकला ।
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