वे व्यक्ति, जो चरित्रवान हैं और औरों को चरित्रवान बनने की प्रेरणा दिया करते है, समय के बनाने वाले हुआ करते हैं ।
आज आस्था संकट के इस समय में ऐसे ऋषि-मनीषियों की आवश्यकता है जो विचारों के इतिहास में क्रांति करे, विज्ञान को दिशा दे, दर्शन को संवारे और पीड़ित मानवता को दिशा दे ।
राजा दिलीप राज्यकार्य से समय निकालकर देश के विभिन्न आश्रम-आरण्यकों में जाते थे । तेजस्वी राजकुमार रघु किशोर हो गये, तो उन्हें भी साथ ले जाने लगे । एक बार रघु ने सहज जिज्ञासावश पूछा---- " पिताजी, आप महत्वपूर्ण राज्य कार्यों की तरह ही आश्रमों में जाने का ध्यान रखते हैं । ऋषियों को उच्चतम अधिकारियों से भी अधिक सम्मान देते हैं, जबकि प्रत्यक्ष में उनकी उपयोगिता दिखती नहीं है । "
राजा बोले---- " वत्स ! ठीक प्रश्न किया ! राज्य की आदर्श व्यवस्था हम चलाते हैं । उसका श्रेय भी हमें मिलता है । पर ऋषिगण ऐसे व्यक्तित्व गढ़ते हैं, जो आदर्श व्यवस्था की योजना बना सकें, उसे क्रियान्वित कर सकें । यदि ऐसे व्यक्तित्व न बने, तो लाख प्रयास करने पर भी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाए । जिनके कारण यह तंत्र व्यवस्थित चल रहा है, उनके निर्माताओं का जितना सम्मान किया जाए, उन पर जितना ध्यान दिया जाए, कम है । मेरा चिंतन और मेरी सामर्थ्य तथा तुम्हारा व्यक्तित्व भी ऋषिकृपा से ही इस रूप में ढला है ।
आज आस्था संकट के इस समय में ऐसे ऋषि-मनीषियों की आवश्यकता है जो विचारों के इतिहास में क्रांति करे, विज्ञान को दिशा दे, दर्शन को संवारे और पीड़ित मानवता को दिशा दे ।
राजा दिलीप राज्यकार्य से समय निकालकर देश के विभिन्न आश्रम-आरण्यकों में जाते थे । तेजस्वी राजकुमार रघु किशोर हो गये, तो उन्हें भी साथ ले जाने लगे । एक बार रघु ने सहज जिज्ञासावश पूछा---- " पिताजी, आप महत्वपूर्ण राज्य कार्यों की तरह ही आश्रमों में जाने का ध्यान रखते हैं । ऋषियों को उच्चतम अधिकारियों से भी अधिक सम्मान देते हैं, जबकि प्रत्यक्ष में उनकी उपयोगिता दिखती नहीं है । "
राजा बोले---- " वत्स ! ठीक प्रश्न किया ! राज्य की आदर्श व्यवस्था हम चलाते हैं । उसका श्रेय भी हमें मिलता है । पर ऋषिगण ऐसे व्यक्तित्व गढ़ते हैं, जो आदर्श व्यवस्था की योजना बना सकें, उसे क्रियान्वित कर सकें । यदि ऐसे व्यक्तित्व न बने, तो लाख प्रयास करने पर भी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाए । जिनके कारण यह तंत्र व्यवस्थित चल रहा है, उनके निर्माताओं का जितना सम्मान किया जाए, उन पर जितना ध्यान दिया जाए, कम है । मेरा चिंतन और मेरी सामर्थ्य तथा तुम्हारा व्यक्तित्व भी ऋषिकृपा से ही इस रूप में ढला है ।
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