मनुष्य के विनाश का सबसे प्रबल कारण है------ उसका अहंकार । मैं ही सब कुछ हूँ , मेरा विचार ही सबसे अच्छा है, मैं सबसे सुंदर हूँ, मैं धनी हूँ आदि अहंकारिक भावनाओं के कारण संसार में कलह, झंझट, युद्ध और महायुद्ध की विभीषका उठ खड़ी होती हैं । धरती पर अनेक रुपवान, शक्तिवान विद्दमान हैं । फिर ऐसे अहंकार से क्या प्रयोजन ?
संसार की क्षणभंगुरता को हमेशा ध्यान में रखने से मनुष्य इस दुष्प्रवृत्ति से बचा रह सकता है ।
संकल्प के धनी व्यक्ति ही अहंकार को कुचलने का साहस कर पाते हैं ।
संसार की क्षणभंगुरता को हमेशा ध्यान में रखने से मनुष्य इस दुष्प्रवृत्ति से बचा रह सकता है ।
संकल्प के धनी व्यक्ति ही अहंकार को कुचलने का साहस कर पाते हैं ।
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