सच्ची खुशी के लिये, खुशहाल जीवन के लिए जरुरी है--- सुकून और शांति खुशहाल जीवन का बैंक बैलेंस से कोई लेना-देना नहीं है । खूब पैसा जमा करके व्यक्ति निश्चिंत जीवन नहीं जी सकता । जो खुशियों को दौलत कमाने या पाने में तलाशते हैं, उनकी तलाश हमेशा अधूरी व अपूर्ण होती है । वे बहुत कुछ पाकर भी खाली हाथ रह जाते हैं । दौलत और शोहरत का सच यही है कि इससे मनुष्य के अहं को संतुष्टि मिलती है, परंतु इससे मिलने वाला सुख अस्थाई होता है ।
मनुष्य के जीवन की श्रेष्ठता और सार्थकता इसी में है कि उससे जितना भी बन पड़े, वह अपनी शक्ति और सामर्थ्य, संपदा को समाज कल्याण में और उच्च उद्देश्यों के लिए लगाये ।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल्फ्रेड नोबेल के जीवन का किस्सा है------ जब उनकी मृत्यु का झूठा समाचार फैलने पर फ्रांस के एक समाचार पत्र ने उनका शोक-संदेश ' मौत के सौदागर की मृत्यु ' के नाम से प्रकाशित किया था, क्योंकि उन्होंने डायनामाइट की खोज की थी । जब एल्फ्रेड नोबेल को यह पता चला तो उन्होंने अपने शेष जीवन और अपनी सारी संपदा को जनहित में लगाने का निर्णय लिया, ताकि मृत्यु के बाद उन्हें श्रेष्ठ कर्मो के लिये याद किया जाये । आज सारा विश्व उन्हें प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार के लिए जानता है, मात्र डायनामाइट की खोज के लिए नहीं ।
ऐसे ही अमेरिका के सुप्रसिद्ध उद्दोगपति एंड्रयु कारनेगी ने मृत्यु से पूर्व अपनी सारी संपदा अमेरिका के हर नगर में पुस्तकालयों की स्थापना में लगा दी, आज उनका नाम बौद्धिक जगत को दिए गये उनके अनुदान के कारण याद रखा जाता है ।
मनुष्य के जीवन की श्रेष्ठता और सार्थकता इसी में है कि उससे जितना भी बन पड़े, वह अपनी शक्ति और सामर्थ्य, संपदा को समाज कल्याण में और उच्च उद्देश्यों के लिए लगाये ।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल्फ्रेड नोबेल के जीवन का किस्सा है------ जब उनकी मृत्यु का झूठा समाचार फैलने पर फ्रांस के एक समाचार पत्र ने उनका शोक-संदेश ' मौत के सौदागर की मृत्यु ' के नाम से प्रकाशित किया था, क्योंकि उन्होंने डायनामाइट की खोज की थी । जब एल्फ्रेड नोबेल को यह पता चला तो उन्होंने अपने शेष जीवन और अपनी सारी संपदा को जनहित में लगाने का निर्णय लिया, ताकि मृत्यु के बाद उन्हें श्रेष्ठ कर्मो के लिये याद किया जाये । आज सारा विश्व उन्हें प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार के लिए जानता है, मात्र डायनामाइट की खोज के लिए नहीं ।
ऐसे ही अमेरिका के सुप्रसिद्ध उद्दोगपति एंड्रयु कारनेगी ने मृत्यु से पूर्व अपनी सारी संपदा अमेरिका के हर नगर में पुस्तकालयों की स्थापना में लगा दी, आज उनका नाम बौद्धिक जगत को दिए गये उनके अनुदान के कारण याद रखा जाता है ।
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