गुरु नानक ( 1469 - 1538 ) आरम्भ से ही सम्प्रदायवाद को देखकर परेशान होते थे । उनकी समझ में नहीं आता था कि जब सब लोग भगवान को मानते हैं और यह भी स्वीकार करते हैं कि सबको उसी ने बनाया है, तब धर्म के नाम पर झगड़ा किस बात का ? उनका कहना था कि जब तक हम धर्म और ईश्वर के सच्चे स्वरुप को नहीं समझेंगे, तब तक न तो हम अपना कुछ भला कर सकेंगे और न ही संसार में कुछ काम करके दिखला सकेंगे ।
गुरु नानक आजीवन लोगों को नेकी और परोपकार की राह पर चलने का उपदेश देते रहे, उन्होंने बतलाया कि यही सच्चा धर्म है, इसी से ईश्वर प्रसन्न होता है । उनके लिये न कोई हिंदू था न कोई मुसलमान, वे तो केवल मानवता के उपासक थे । नानक देव सामाजिक जीवन में समानता के समर्थक थे । उन्होंने अपने इस आदर्श को लंगर के रूप में सबके सामने रखा । इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लोग भोजन कर सकते थे ।
गाँधीजी ने सामाजिक और आर्थिक विकास के रूप में जिस सर्वोदय सिद्धान्त की स्थापना की वह नानक के ' सरववत्त का भला ' में देखने को मिलता है ।
उनकी अधिकतर शिक्षाएं ' जप जी ' नामक गीत में बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई हैं ।
उनका देहांत होने पर सबने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया और हजारों कण्ठों से यही आवाज निकली----- गुरु नानक शाह फकीर
हिंदू का गुरु मुसलमान का पीर ।
गुरु नानक आजीवन लोगों को नेकी और परोपकार की राह पर चलने का उपदेश देते रहे, उन्होंने बतलाया कि यही सच्चा धर्म है, इसी से ईश्वर प्रसन्न होता है । उनके लिये न कोई हिंदू था न कोई मुसलमान, वे तो केवल मानवता के उपासक थे । नानक देव सामाजिक जीवन में समानता के समर्थक थे । उन्होंने अपने इस आदर्श को लंगर के रूप में सबके सामने रखा । इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लोग भोजन कर सकते थे ।
गाँधीजी ने सामाजिक और आर्थिक विकास के रूप में जिस सर्वोदय सिद्धान्त की स्थापना की वह नानक के ' सरववत्त का भला ' में देखने को मिलता है ।
उनकी अधिकतर शिक्षाएं ' जप जी ' नामक गीत में बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई हैं ।
उनका देहांत होने पर सबने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया और हजारों कण्ठों से यही आवाज निकली----- गुरु नानक शाह फकीर
हिंदू का गुरु मुसलमान का पीर ।
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