' आज जीवन के हर क्षेत्र में बौद्धिक पराधीनता छाई हुई है , गरीबी, बीमारी, अशिक्षा, अनैतिकता, अधार्मिकता, अनीति, नशेबाजी आदि अगणित दुष्प्रवृत्तियों से लोहा लेने की आवश्यकता है । यह कार्य यदि कोई पूरा कर सकता है तो वह नई पीढ़ी ही हो सकती है । '
राजा जन्मेजय नित्य रात्रिभ्रमण हेतु वेश बदलकर निकलते थे । वे यह देखने का प्रयास करते कि विकास की योजनाओं का पालन हो रहा है कि नहीं । एक रात उन्होंने देखा कि उनके राज्य में एक गाँव में कुछ युवक खेल खेल रहे थे । एक युवक राजा बना बैठा उपदेश दे रहा था । शेष सभी सभासद बने बैठे थे । वह बोला----- " सभासदों ! जिस राज्य के कर्मचारीगण वैभव-विलास में डूबे रहते हों, उसका राजा कितना ही नेक-प्रजावत्सल क्योँ न हो, वहां की प्रजा सुखी नहीं रह सकती । जन्मेजय के राज्याधिकारी जो भूल कर रहें हैं, वह भूल तुम मत करना । राज्य के अधिकारीगणों को वैभव-विलासमुक्त जीवन जीना चाहिए "
जन्मेजय उस युवक से इतने प्रभावित हुए कि उसे अपने साथ ले गये और अपना महामंत्री बना लिया । । उस युवक का नाम था-- कुलेश । एक कुदाली, लाठी, बिछौना और एक अँगोछा लेकर वह आया था । उसने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में मंत्रियों-कर्मचारियों के लिये एक आचार संहिता बनाई, जिसमे सभी को 10 घंटे कार्य अनिवार्य रूप से नित्य करना पड़ता था | सारा धन प्रजा की भलाई में लगने लगा । कुछ ईर्ष्यालु उसके पीछे लग गये । उनने पता लगा लिया कि कुलेश को जो महामंत्री का आवास मिला है, वहां एक कक्ष है जिसमे किसी को भी जाने नहीं दिया जाता है ।
राजा से शिकायत की गई कि सारा धन वहीँ छिपा रखा है । जन्मेजय ने उसके आवास का दौरा किया , उन्हें कुछ भी नहीं दीखा । फिर उन्हें सामान्य सा कक्ष दिखा । उनकी द्रष्टि देखकर उन्हें आमंत्रित किया कि वे इसमें प्रवेश करें । वहां कुदाली, लाठी, बिछौना व अँगोछा रखे थे । उसने चारों चीजें उठाई और चल दिया, कहा---- बस, राजन ! मेरा काम अब समाप्त हो गया "
जन्मेजय सभासदों के षडयंत्रों से हाथ मलते रह गये ।
आज देश को कुलेश जैसे युवाओं की जरुरत है जो चरित्र से युवा हों ।
राजा जन्मेजय नित्य रात्रिभ्रमण हेतु वेश बदलकर निकलते थे । वे यह देखने का प्रयास करते कि विकास की योजनाओं का पालन हो रहा है कि नहीं । एक रात उन्होंने देखा कि उनके राज्य में एक गाँव में कुछ युवक खेल खेल रहे थे । एक युवक राजा बना बैठा उपदेश दे रहा था । शेष सभी सभासद बने बैठे थे । वह बोला----- " सभासदों ! जिस राज्य के कर्मचारीगण वैभव-विलास में डूबे रहते हों, उसका राजा कितना ही नेक-प्रजावत्सल क्योँ न हो, वहां की प्रजा सुखी नहीं रह सकती । जन्मेजय के राज्याधिकारी जो भूल कर रहें हैं, वह भूल तुम मत करना । राज्य के अधिकारीगणों को वैभव-विलासमुक्त जीवन जीना चाहिए "
जन्मेजय उस युवक से इतने प्रभावित हुए कि उसे अपने साथ ले गये और अपना महामंत्री बना लिया । । उस युवक का नाम था-- कुलेश । एक कुदाली, लाठी, बिछौना और एक अँगोछा लेकर वह आया था । उसने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में मंत्रियों-कर्मचारियों के लिये एक आचार संहिता बनाई, जिसमे सभी को 10 घंटे कार्य अनिवार्य रूप से नित्य करना पड़ता था | सारा धन प्रजा की भलाई में लगने लगा । कुछ ईर्ष्यालु उसके पीछे लग गये । उनने पता लगा लिया कि कुलेश को जो महामंत्री का आवास मिला है, वहां एक कक्ष है जिसमे किसी को भी जाने नहीं दिया जाता है ।
राजा से शिकायत की गई कि सारा धन वहीँ छिपा रखा है । जन्मेजय ने उसके आवास का दौरा किया , उन्हें कुछ भी नहीं दीखा । फिर उन्हें सामान्य सा कक्ष दिखा । उनकी द्रष्टि देखकर उन्हें आमंत्रित किया कि वे इसमें प्रवेश करें । वहां कुदाली, लाठी, बिछौना व अँगोछा रखे थे । उसने चारों चीजें उठाई और चल दिया, कहा---- बस, राजन ! मेरा काम अब समाप्त हो गया "
जन्मेजय सभासदों के षडयंत्रों से हाथ मलते रह गये ।
आज देश को कुलेश जैसे युवाओं की जरुरत है जो चरित्र से युवा हों ।
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