विक्रमी संवत् के प्रवर्तक महाराजा विक्रमादित्य की सभा लगी हुई थी । उस दिन सभा में किसी आसुरी-प्रवृति के व्यक्ति ने प्रवेश किया । उसकी एक जिज्ञासा थी, उसने इसकी राजा से अनुमति मांगी । राजा ने अनुमति दी तो वह बोला---- "मैंने सुना है दुष्कर्म और पाप व्यक्ति का पतन करते हैं तथा वह नष्ट हो जाता है, पर उस नष्ट होने वाले की क्या गति होती है, यह मेरा प्रश्न है ? नष्टो कान्या गति ? कृपा कर इसका समाधान कीजिए ।
विक्रमादित्य ने कालिदास की ओर देखा, कालिदास ने कहना शुरू किया---- " जब मैं गुरुकुल में पढ़ता था तब एक ब्राह्मण प्रात: काल ही भिक्षा मांगने आया । मेरे एक सहपाठी ने उसे दुत्कारते हुए कहा कि तुम्हे लज्जा नहीं आती, प्रात: पूजन के समय भीख मांग रहे हो । "
ब्राह्मण बोला--- " मैं जुआ खेलता हूँ और रात जुआ खेलने में अपना सब कुछ हार बैठा, इस लिए इस समय भीख मांग रहा हूँ । "
' छि: ब्राह्मण और जुआ, यह तो लज्जा की बात है । '
' जुआ खेलते-खेलते मैं मदिरापान भी करने लगा । '
' हे भगवान ! तुम्हारा इतना पतन !'
" मदिरापान से वासना वृति जागी, ऐसी दुष्प्रवृत्तियों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता पड़ी, इतना धन पास था नहीं इसलिए चोरी भी करनी पड़ी । "
इतना कहकर वह ब्राह्मण चला गया, आश्रम में गुरुदेव आये । गुरुदेव ने कहा--- " जो एक बार हीन प्रवृति के मार्ग पर चला, उसे उस प्रवृति के संताप से मुक्त होने के लिए अनेकों बार कुमार्ग पर चलना पड़ता है, यही है नष्ट हुए व्यक्ति की गति । "
विक्रमादित्य ने कालिदास की ओर देखा, कालिदास ने कहना शुरू किया---- " जब मैं गुरुकुल में पढ़ता था तब एक ब्राह्मण प्रात: काल ही भिक्षा मांगने आया । मेरे एक सहपाठी ने उसे दुत्कारते हुए कहा कि तुम्हे लज्जा नहीं आती, प्रात: पूजन के समय भीख मांग रहे हो । "
ब्राह्मण बोला--- " मैं जुआ खेलता हूँ और रात जुआ खेलने में अपना सब कुछ हार बैठा, इस लिए इस समय भीख मांग रहा हूँ । "
' छि: ब्राह्मण और जुआ, यह तो लज्जा की बात है । '
' जुआ खेलते-खेलते मैं मदिरापान भी करने लगा । '
' हे भगवान ! तुम्हारा इतना पतन !'
" मदिरापान से वासना वृति जागी, ऐसी दुष्प्रवृत्तियों को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता पड़ी, इतना धन पास था नहीं इसलिए चोरी भी करनी पड़ी । "
इतना कहकर वह ब्राह्मण चला गया, आश्रम में गुरुदेव आये । गुरुदेव ने कहा--- " जो एक बार हीन प्रवृति के मार्ग पर चला, उसे उस प्रवृति के संताप से मुक्त होने के लिए अनेकों बार कुमार्ग पर चलना पड़ता है, यही है नष्ट हुए व्यक्ति की गति । "
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