एक मुजरिम से लोकप्रिय लेखक बनना मनुष्य के शक्ति सामर्थ्य की कहानी है, जो यह सिद्ध करती है कि अपने कृत्यों को थोड़ा सा अवलोकित कर और उनके औचित्य को परखकर भविष्य की योजना बनायी जा सके और उसे क्रियान्वित किया जा सके तो व्यक्तित्व का विकास बड़ी सहजता से हो सकता है |
पश्चिम जर्मनी के एक नगर में एक किशोर जिसका नाम था-- जाइगेर, रोजगार की तलाश में एक मोटर कंपनी के मालिक से मिला और कहा मैं बहुत ईमानदारी से काम करूँगा । मालिक ने कहा -- " ठीक है जो काम तुम्हे दिखाई दे रहा है, वही कर के दिखाओ । " जाइगेर ने तुरंत झाड़ू उठाई और कंपनी की इमारत एक ही दिन में चमकने लगी । दुबले-पतले जाइगेर की चुस्ती देखकर मालिक हतप्रभ रह गया और उसने उसे अपने यहाँ नौकर रख लिया ।
मालिक जाइगेर से खुश था अत: अन्य कर्मचारियों ने ईर्ष्यावश उसे चोरी के अपराध में फँसा दिया, उसे सजा हो गई | जेल से छूटने के बाद उसे कहीं नौकरी नहीं मिली, जब भूखों मरने लगा तो उसने एक गिरोह बना लिया और ५० से भी अधिक डकैतियां की, पुनः पकड़ा गया, उसे जेल में सड़ना पड़ा ।
कारागृह में उसे अपने जीवन के प्रति घ्रणा होने लगी, वह पश्चाताप की आग में जलने लगा | उसने अपनी व्यथा साबुन के एक रैपर पर लिखी, वह एक कविता के रूप में अभिव्यक्त हुई । उसने जेल के पादरी से अपनी व्यथा कही । पादरी को लगा जाइगेर में प्रतिभा है, उसकी सहायता की जाये तो वह अपना जीवन सुधार सकता है । पादरी ने सरकार की ओर से उसकी साहित्य की रूचि विकसित करने के साधन जुटा दिए । कविता और गद्य के सैकड़ों पृष्ठ उसने जेल में लिखे । जेल से छूटने के बाद वह मजदूरी करने लगा और एक अच्छा उपन्यास 'दी फोट्रेस ' लिखा । विद्वानों ने इसे एक उत्कृष्ट कृति के रूप में स्वीकार किया, इस कृति ने उसे जर्मनी में लोकप्रिय बना दिया |
पश्चिम जर्मनी के एक नगर में एक किशोर जिसका नाम था-- जाइगेर, रोजगार की तलाश में एक मोटर कंपनी के मालिक से मिला और कहा मैं बहुत ईमानदारी से काम करूँगा । मालिक ने कहा -- " ठीक है जो काम तुम्हे दिखाई दे रहा है, वही कर के दिखाओ । " जाइगेर ने तुरंत झाड़ू उठाई और कंपनी की इमारत एक ही दिन में चमकने लगी । दुबले-पतले जाइगेर की चुस्ती देखकर मालिक हतप्रभ रह गया और उसने उसे अपने यहाँ नौकर रख लिया ।
मालिक जाइगेर से खुश था अत: अन्य कर्मचारियों ने ईर्ष्यावश उसे चोरी के अपराध में फँसा दिया, उसे सजा हो गई | जेल से छूटने के बाद उसे कहीं नौकरी नहीं मिली, जब भूखों मरने लगा तो उसने एक गिरोह बना लिया और ५० से भी अधिक डकैतियां की, पुनः पकड़ा गया, उसे जेल में सड़ना पड़ा ।
कारागृह में उसे अपने जीवन के प्रति घ्रणा होने लगी, वह पश्चाताप की आग में जलने लगा | उसने अपनी व्यथा साबुन के एक रैपर पर लिखी, वह एक कविता के रूप में अभिव्यक्त हुई । उसने जेल के पादरी से अपनी व्यथा कही । पादरी को लगा जाइगेर में प्रतिभा है, उसकी सहायता की जाये तो वह अपना जीवन सुधार सकता है । पादरी ने सरकार की ओर से उसकी साहित्य की रूचि विकसित करने के साधन जुटा दिए । कविता और गद्य के सैकड़ों पृष्ठ उसने जेल में लिखे । जेल से छूटने के बाद वह मजदूरी करने लगा और एक अच्छा उपन्यास 'दी फोट्रेस ' लिखा । विद्वानों ने इसे एक उत्कृष्ट कृति के रूप में स्वीकार किया, इस कृति ने उसे जर्मनी में लोकप्रिय बना दिया |
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