' लोग धर्म के नाम पर देवदूतों को मार डालते है और समझते हैं कि उन्होंने पुण्य किया, परमात्मा की सेवा की । वे पिता के संदेशवाहक देवदूत को मार कर ही उसका और उसके वचनों का महत्व समझ पाते हैं । '
ईसा मसीह की असाधारण सफलता एवं उनके अभिनव उत्कर्ष में उनके व्यक्तित्व में निहित गुण ही मुख्य थे । ईसा मसीह में असीम आत्मविश्वास था, वे कोई भी कार्य करते समय उसकी संपन्नता के प्रति पूर्ण-आश्वस्त रहते थे तथा पूरे विश्वास के साथ उसे पूर्ण करते थे ।
ईसा में असीम, धैर्य और साहस था, उनके 12 शिष्य थे, जिन्हें अनवरत तीन वर्षों तक अपनी पूरी क्षमता से वे शिक्षण देते रहे । तीन वर्ष के प्रयासों के बाद भी शिष्यगण ईसा मसीह को पूर्णत: समझ नहीं पाये थे । ये शिष्यगण सदैव ही यह पूछते रहते थे कि इतना सब कर ईसा कौन-सा राज्य स्थापित करने जा रहें हैं व उस राज्य में उन शिष्यों को क्या-क्या पद मिलने वाले हैं ।
अपने शिष्यों के इस प्रकार के उपहासास्पद व निराशापूर्ण व्यवहार से भी ईसा ने धैर्य नहीं खोया, वे निरंतर अपने लक्ष्य की पूर्ति में लगे ही रहे । फिर विश्व ने देखा कि अंतत: ईसा के विश्वास, धैर्य
व साहस को सफलता मिली ।
ईसा कहते थे सुख चाहते हो तो दूसरों को सुख दो, यदि तुम बड़े बनना चाहते हो तो उन गुणों को पूजो जिनके कारण मुझे बड़ा मानते हो । उनका कहना था हर कोई स्वर्ग के राज्य में अपने प्रयत्नों से ही प्रवेश करता है, ऊँचा बनने के लिए ललचाओ मत, प्रेम भरी सेवा को अपनी धर्म साधना बनाओ ।
ईसा मसीह की असाधारण सफलता एवं उनके अभिनव उत्कर्ष में उनके व्यक्तित्व में निहित गुण ही मुख्य थे । ईसा मसीह में असीम आत्मविश्वास था, वे कोई भी कार्य करते समय उसकी संपन्नता के प्रति पूर्ण-आश्वस्त रहते थे तथा पूरे विश्वास के साथ उसे पूर्ण करते थे ।
ईसा में असीम, धैर्य और साहस था, उनके 12 शिष्य थे, जिन्हें अनवरत तीन वर्षों तक अपनी पूरी क्षमता से वे शिक्षण देते रहे । तीन वर्ष के प्रयासों के बाद भी शिष्यगण ईसा मसीह को पूर्णत: समझ नहीं पाये थे । ये शिष्यगण सदैव ही यह पूछते रहते थे कि इतना सब कर ईसा कौन-सा राज्य स्थापित करने जा रहें हैं व उस राज्य में उन शिष्यों को क्या-क्या पद मिलने वाले हैं ।
अपने शिष्यों के इस प्रकार के उपहासास्पद व निराशापूर्ण व्यवहार से भी ईसा ने धैर्य नहीं खोया, वे निरंतर अपने लक्ष्य की पूर्ति में लगे ही रहे । फिर विश्व ने देखा कि अंतत: ईसा के विश्वास, धैर्य
व साहस को सफलता मिली ।
ईसा कहते थे सुख चाहते हो तो दूसरों को सुख दो, यदि तुम बड़े बनना चाहते हो तो उन गुणों को पूजो जिनके कारण मुझे बड़ा मानते हो । उनका कहना था हर कोई स्वर्ग के राज्य में अपने प्रयत्नों से ही प्रवेश करता है, ऊँचा बनने के लिए ललचाओ मत, प्रेम भरी सेवा को अपनी धर्म साधना बनाओ ।
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