श्रेष्ठतम साहित्य के लिए 1975 में पुलत्जर पुरस्कार और 1976 में नोबुल पुरस्कार प्राप्त सॉलबेलो का जन्म 1915 में कनाडा के एक यहूदी परिवार में हुआ था । जब वे बड़े हुए तो उन्होंने दो महायुद्धों के भीषण विध्वंस को देखा । इससे उनका ह्रदय व्याकुल हो गया । उन्होंने देखा कि औद्दोगिक विकास के क्षेत्र में सफल होने के बाद मनुष्य को यह भ्रम होने लगा कि वह सर्वशक्तिमान है और मत्स्य न्याय के अनुसार उसे अपने से कमजोर लोगों को चट कर डालने का पूरा अधिकार है ।
दूसरे महायुद्ध में विद्वेष की वह ज्वाला जिसने लाखों यहूदियों के प्राण लिए, यह देख उनका ह्रदय विचलित हो उठा |
सॉलबेलो ने मनुष्य में आस्था के बुझे दीपों को फिर से जलाने का प्रयास अपने साहित्य के माध्यम से किया जिससे संसार भर के बुद्धिजीवियों के मन-मस्तिष्क में मंथन-सा मचने लगा । उनके साहित्य ने नई दिशा दी, वह दिशा है---' मनुष्य की चेतना को परिष्कृत करने और संस्कारित करने तथा मनुष्य का आन्तरिक स्तर ऊँचा उठाने की प्रेरणा । '
आधुनिक सभ्यता के अभिशापों से त्रस्त मानवता को विकास की दिशा में अग्रसर करने के उद्देश्य से उन्होंने अपने पहले उपन्यास ' डैंगलिग मेल ' में आम आदमी के अंदर पनपती जा रही गैर- जिम्मेदारी का पैना चित्रण किया । अपने एक उपन्यास 'द विक्टिम ' में पाठकों को प्रेरणा दी है कि
मनुष्य को मात्र मानव होकर जीने का प्रयास करना चाहिए ।
उनके साहित्य की पंक्ति-दर-पंक्ति यह विश्वास झलकता है कि समस्त निषेधात्मक और ध्वंसकारी प्रवृतियों के बावजूद भी मानवजाति अंततः आत्मा की शक्ति के बल पर विजयी होगी, न केवल जीवित रहेगी वरन पुन: समर्थ और सशक्त बनेगी ।
दूसरे महायुद्ध में विद्वेष की वह ज्वाला जिसने लाखों यहूदियों के प्राण लिए, यह देख उनका ह्रदय विचलित हो उठा |
सॉलबेलो ने मनुष्य में आस्था के बुझे दीपों को फिर से जलाने का प्रयास अपने साहित्य के माध्यम से किया जिससे संसार भर के बुद्धिजीवियों के मन-मस्तिष्क में मंथन-सा मचने लगा । उनके साहित्य ने नई दिशा दी, वह दिशा है---' मनुष्य की चेतना को परिष्कृत करने और संस्कारित करने तथा मनुष्य का आन्तरिक स्तर ऊँचा उठाने की प्रेरणा । '
आधुनिक सभ्यता के अभिशापों से त्रस्त मानवता को विकास की दिशा में अग्रसर करने के उद्देश्य से उन्होंने अपने पहले उपन्यास ' डैंगलिग मेल ' में आम आदमी के अंदर पनपती जा रही गैर- जिम्मेदारी का पैना चित्रण किया । अपने एक उपन्यास 'द विक्टिम ' में पाठकों को प्रेरणा दी है कि
मनुष्य को मात्र मानव होकर जीने का प्रयास करना चाहिए ।
उनके साहित्य की पंक्ति-दर-पंक्ति यह विश्वास झलकता है कि समस्त निषेधात्मक और ध्वंसकारी प्रवृतियों के बावजूद भी मानवजाति अंततः आत्मा की शक्ति के बल पर विजयी होगी, न केवल जीवित रहेगी वरन पुन: समर्थ और सशक्त बनेगी ।
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