आज सर्वत्र उस विनाशक बुद्धि के दर्शन हो रहें हैं, जो स्वार्थ का कालपाश लिए, अहंता का मदिरापान किये औरों के जीवन पर घातक प्रहार कर रही है । उसे तो यह भी चेत नहीं है कि दोषी कौन है और निर्दोष कौन ?
भगवान बुद्ध ने आज से ढाई हजार वर्ष पहले इस व्यथा को भाँपते हुए कहा कि यदि बुद्धि को शुद्ध न किया गया तो परिणाम भयावह होंगे । बुद्धि यदि स्वार्थ के मोहपाश और अहं के उन्माद से पीड़ित है तो उससे केवल कुटिलता ही निकलेगी, परंतु इसे यदि शुद्ध किया जा सका तो इसी कीचड़ में करुणा के फूल खिल सकते हैं । बुद्धि अपनी अशुद्ध दशा में इनसान को शैतान बनाती है तो इसकी परम पवित्र शुद्ध दशा में इनसान बुद्ध बनता है, उसमे भगवता अवतरित होती है ।
मानव बुद्धि को शुद्ध करने के लिए सबसे पहली जरुरत है कि हमारा द्रष्टिकोण सुधरे, हम समझें कि जीवन सृजन के लिए है न कि विनाश के लिये । बुद्धि जितनी शुद्ध होती है, उतनी ही उसमें संवेदना पनपती है । आज के इस दौर के इनसानी जीवन को इसी संवेदना की तलाश है ।
भगवान बुद्ध ने आज से ढाई हजार वर्ष पहले इस व्यथा को भाँपते हुए कहा कि यदि बुद्धि को शुद्ध न किया गया तो परिणाम भयावह होंगे । बुद्धि यदि स्वार्थ के मोहपाश और अहं के उन्माद से पीड़ित है तो उससे केवल कुटिलता ही निकलेगी, परंतु इसे यदि शुद्ध किया जा सका तो इसी कीचड़ में करुणा के फूल खिल सकते हैं । बुद्धि अपनी अशुद्ध दशा में इनसान को शैतान बनाती है तो इसकी परम पवित्र शुद्ध दशा में इनसान बुद्ध बनता है, उसमे भगवता अवतरित होती है ।
मानव बुद्धि को शुद्ध करने के लिए सबसे पहली जरुरत है कि हमारा द्रष्टिकोण सुधरे, हम समझें कि जीवन सृजन के लिए है न कि विनाश के लिये । बुद्धि जितनी शुद्ध होती है, उतनी ही उसमें संवेदना पनपती है । आज के इस दौर के इनसानी जीवन को इसी संवेदना की तलाश है ।
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